क्या कभी आपने सोचा है कि जेब में खनकता एक रुपये का सिक्का सरकार को कितने में पड़ता है?
सड़क किनारे चायवाले से लेकर सुपरमार्केट की काउंटर तक, एक रुपये का सिक्का हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा है। लेकिन क्या आप जानते हैं — इस छोटे से सिक्के को बनाने की कीमत खुद उसके ‘मूल्य’ से ज़्यादा है?
🔍 तो सवाल उठता है: ek rupee coin ka manufacturing cost kitna hoga?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा 2018 में एक आरटीआई (RTI) के जवाब में इस रहस्य से पर्दा उठाया गया। एक रुपये का सिक्का बनाने में सरकार को करीब 1.11 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। यानी सरकार हर बार एक रुपये का सिक्का बाजार में लाने पर लगभग 11 पैसे का घाटा उठाती है।
🧾 बाकी सिक्कों की लागत कितनी है?
यह घाटा सिर्फ एक रुपये तक ही सीमित नहीं है। दूसरे सिक्कों की लागत भी आपको हैरान कर सकती है:
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₹2 का सिक्का: लागत करीब ₹1.28
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₹5 का सिक्का: लागत करीब ₹3.69
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₹10 का सिक्का: लागत लगभग ₹5.54
ध्यान देने वाली बात यह है कि सिक्कों की कीमत का निर्धारण केवल धातु के आधार पर नहीं होता — इसमें निर्माण, ढुलाई, श्रम और अन्य प्रक्रियागत खर्च भी शामिल होते हैं।
🏭 कहां और कैसे बनते हैं ये सिक्के?
भारत सरकार के टकसाल विभाग द्वारा सिक्कों का निर्माण किया जाता है। प्रमुख टकसालें मुंबई और हैदराबाद में स्थित हैं।
एक रुपये का सिक्का स्टेनलेस स्टील से बनता है, जिसका वजन लगभग 3.76 ग्राम, व्यास 21.93 मिमी और मोटाई 1.45 मिमी होती है।
🧾 क्या नोट छापना सस्ता पड़ता है?
अगर हम नोटों की छपाई की बात करें, तो स्थिति कुछ अलग है। उदाहरण के लिए:
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₹10 के 1000 नोट छापने में खर्च आता है ₹960
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₹100 के 1000 नोट पर लागत है ₹1,770
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₹200 के 1000 नोट: लागत ₹2,370
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₹500 के 1000 नोट: खर्च ₹2,290
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जबकि ₹2000 का एक नोट छापने में लागत करीब ₹4 थी
इसका मतलब, छोटे मूल्य के नोट और सिक्के छापना और ढालना, सरकार के लिए अपेक्षाकृत महंगा सौदा होता है।
❓ क्या घाटे का यह सिलसिला जारी रहेगा?
सवाल यही है कि सरकार जानबूझकर घाटे में सिक्के क्यों बनवाती है? इसका जवाब है संचालन और सुगमता।
सिक्के नकली नहीं बनाए जा सकते, उनकी उम्र ज़्यादा होती है, और छोटे लेनदेन में बेहद कारगर साबित होते हैं।
🧠 तो अगली बार जब कोई पूछे — “ek rupee coin ka manufacturing cost kitna hoga?”
आप गर्व से कह सकते हैं — “भले ही उसकी कीमत एक रुपये हो, लेकिन उसे बनाने में सरकार को इससे ज्यादा खर्च उठाना पड़ता है!”