शाहरुख खान, दिल्ली से आया एक मामूली सा लड़का, किसे पता था एक दिन भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा सुपरस्टार बन जायेगा। उनकी खूबसूरत मुस्कान और गहरी आंखों के लोग दीवानी बन चुके हैं। उन्होंने बॉलीवुड इंडस्ट्री को एक से बढ़कर एक फिल्में दी हैं जिन्हें दर्शक बेहद पसंद करते हैं। हाल ही में शाहरुख खान को लोकार्नो फिल्म फेस्टिवल में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपने इंटरव्यू में एक मामूली इंसान से सुपरस्टार बनने तक के सफर में खुलकर बताया।
जब शाहरूख से पूछा गया कि उन्होंने एक्टिंग और फिल्मों में आने के बारे में कैसे सोचा, तब शाहरुख बताते हैं, “सच कहूं तो मैंने कभी एक्टर बनने का सोचा नहीं था। मैं उन बच्चों में से था जो स्कूल में हो रही हर चीज में हिस्सा लेना चाहते थे। 100 मीटर की रेस हो या ड्रामा हो, या छोटे नाटक हों या एग्जिबिशन हो। ”
शाहरुख आगे बताते हैं, “फिल्म देखना बड़ी बात होती थी। ये 80s की बात है। थिएटर जाना बड़ी बात थी। मेरी मां फिल्मों की बड़ी फैन थीं। हमारे घर में वीडियो कैसेट रिकॉर्डर था। उस समय ये घर में होना बहुत बड़ी बात थी। हम काफी गरीब थे, लेकिन मेरी मां की बहन बहुत अमीर थीं, उन्होंने हमें ये गिफ्ट किया था। ये मेरी मां के कमरे में होता था, और जैसा हम भारत में कहते हैं- ‘मां के कदमों में जन्नत होती है।’ मेरी मां यही बोलकर मुझे पैर दबाने को कहती थीं।”शाहरुख बताते हैं कि वह अपनी मां के पैर दबाते हुए टीवी देखा करते थे।
“पुरानी फिल्में 1-2 रुपय की आती थीं और नई 10 रुपय की तो एक के बाद एक फिल्में चलती रहती थीं और मुझे फिल्मों से प्यार होने लगा। एक बार हिंदी का एग्जाम था। मैं आयरिश ब्रदर्स के एक स्कूल में था, क्रिश्चियन स्कूल था, बहुत स्ट्रिक्ट, बहुत इंग्लिश स्पीकिंग। नॉर्मल बच्चे लोकल लैंग्वेज में कमजोर होते हैं, तो हिंदी मेरी बहुत अच्छी नहीं थी। मेरी मां ने कहा अगर हिंदी डिक्टेशन में तुम 10 में से पूरे 10 नंबर लेकर आए, तो मैं तुम्हें फिल्म दिखाने थिएटर लेकर जाऊंगी।”
शाहरुख ने खोला एक अनोखा राज
शाहरुख एक अनोखे राज के बारे में बताते हुए कहते हैं, “मैंने ये कभी नहीं बताया, लेकिन आज बता देता हूं, मैंने शायद एक आंसर, एक दोस्त से कॉपी किया था लेकिन मुझे पूरे 10 नंबर मिले थे और तब मेरी मां मुझे पहली बार फिल्म दिखाने थिएटर लेकर गईं। हैरानी या संयोग की बात है कि ये फिल्म ‘जोशीले’ थी, जिसे उस डायरेक्टर ने बनाया था, जिनके साथ बाद में मैंने अपनी सबसे ज्यादा फिल्में की, यश चोपड़ा।”
शाहरुख आगे बताते हैं कि उनके माता-पिता के देहांत के बाद वो दिल्ली से बाहर जाकर कुछ करना चाहते थे। उन्होंने बताया, “मैं कम्युनिकेशन और फिल्म मेकिंग में मास्टर्स कर रहा था, मैं डायरेक्टर बनना चाहता था। मैं मुंबई आ गया और फिर इंडिया में टेलीविजन आ गया था तो मुझे छोटे-छोटे कुछ रोल मिल गए। मैं 1990 में एक साल के लिए मुंबई आया था। मैंने कहा था कि मैं एक साल काम करूंगा, एक लाख रुपय कमाऊंगा। वापस जाकर एक साइंटिस्ट या जर्नलिस्ट बनूंगा, लेकिन मैं आजतक वापस नहीं गया।”