आपको बता दें कि आजादी के बाद आरक्षण 10 वर्ष के लिए लागू किया गया था लेकिन राजनीति के अखाड़े ने इसे 70 वर्ष तक जारी रखा और आज भी इसके अंत का कोई ठिकाना नहीं है .हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यह बात सामने आई है कि आरक्षण किसी का मौलिक अधिकार नहीं है .
सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार जिस तरह ओबीसी वर्ग को 50% आरक्षण देती है उसी तरह मेडिकल एंट्रेंस के लिए भी उन्हें ऑल इंडिया में 50% आरक्षण दिया जाए इस तरह की याचिकाएं थी .आश्चर्य की बात है कि तमिलनाडु सरकार के साथ उनकी इस मुहिम में उनकी विरोधी पार्टियां डीएमके, सीपीएम, सीपीआई, कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टियां भी साथ दिखी .इनके अनुसार ओबीसी वर्ग को 50% आरक्षण न देना उनके संवैधानिक हक के खिलाफ है .
वोटों की गणित में आरक्षण का खेल
संविधान निर्माता बाबा साहब अंबेडकर भी यही चाहते थे कि आरक्षण केवल शुरुआती 10 सालों के लिए लागू हो लेकिन राजनीति ने आरक्षण को ऐसा हथियार बनाया की राजनीतिक पार्टियां और नेता सत्ता में आने के लिए इसे आगे बढ़ाते रहें. किसी ने भी काबिलियत और देश के विकास के बारे में नहीं सोचा . हालांकि सभी राजनीतिक पार्टियों को यह पता है कि आरक्षण के कारण कहीं ना कहीं काबिल लोगों की उपेक्षा की जा रही है. इस कारण देश के विकास में बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है .लेकिन किसी भी राजनीतिक पार्टी में आरक्षण खत्म करने या इसे जातिगत व्यवस्था की जगह आर्थिक आधार पर दिए जाने के प्रावधान का साहस नहीं है .