“कौन कहता है कि आसमाँ में सुराख नहीं हो सकता?
ज़रा तबीयत से पत्थर उछालो तो यारों।”
यह पंक्तियाँ शत-प्रतिशत चरितार्थ होती हैं बिहार में जन्मे और झारखंड में पले-बढ़े प्रोडक्शन डिजाइनर प्रभात ठाकुर (Production Designer Prabhat Thakur) पर — जिनकी आने वाली फिल्म सोनाक्षी सिन्हा अभिनीत ‘जटाधारा’ 7 नवंबर 2025 को रिलीज़ होने जा रही है। बोकारो की गलियों से निकलकर बॉलीवुड की चमकदार दुनिया तक का उनका सफर किसी प्रेरक कथा से कम नहीं है।
झारखंड के बोकारो स्टील सिटी में पले-बढ़े प्रभात ठाकुर का जन्म 11 अक्टूबर 1975 को उनके ननिहाल, जाम (झारखंड) में हुआ था। बचपन से ही कला और फिल्मों के प्रति उनमें गहरा आकर्षण था। रामलीला के मंचों पर सजे बैकड्रॉप्स, गाँव की नाटक मंडलियाँ, और बोकारो की झोपड़ी कॉलोनी में लगने वाले फिल्म शो — इन सबने उनके मन में सिनेमा की कला के बीज बो दिए।

12वीं तक की पढ़ाई बोकारो में पूरी करने के बाद प्रभात ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से विज़ुअल आर्ट्स में प्रशिक्षण लिया। यहीं उनके अंदर की कला तकनीकी रूप से परिपक्व हुई। 1992 में अभिनेता ओम पुरी से हुई मुलाकात ने उनके करियर की दिशा तय की। ओम पुरी ने उनके बनाए स्केच देखकर उन्हें थिएटर और आर्ट में आगे बढ़ने की सलाह दी — जिसे प्रभात ने पूरे मन से अपनाया।
1999 में मुंबई आगमन के बाद उन्होंने फिल्म ‘खूबसूरत’ से अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद ‘हेरा फेरी’, ‘गदर’, ‘आंखें’, ‘मकबूल’, ‘तेरे नाम’ जैसी कई चर्चित फिल्मों में बतौर असिस्टेंट आर्ट डायरेक्टर काम किया। धीरे-धीरे उन्होंने प्रोडक्शन डिजाइनिंग की बारीकियों को आत्मसात किया और बतौर प्रोडक्शन डिजाइनर ‘कड़वी हवा’, ‘बहुत हुआ सम्मान’, ‘टीटू अंबानी’, ‘सरोज का रिश्ता’, ‘कलर ब्लैक’, ‘बाप पिया’ जैसी फिल्मों में अपनी पहचान बनाई।
अब उनकी आगामी फिल्म ‘जटाधारा’, जिसमें सोनाक्षी सिन्हा और सुधीर बाबू मुख्य भूमिकाओं में हैं, उनके करियर का एक नया मील का पत्थर साबित होने वाली है। इस फिल्म के लिए तैयार किया गया “मांडवा हाउस” सेट उनकी मेहनत और दृष्टि का जीवंत उदाहरण है — जो दो अलग-अलग कालखंडों को दर्शाता है: एक उजड़ा हुआ और दूसरा जीवंत, रंगों से भरा संसार।
प्रभात ठाकुर न सिर्फ़ एक प्रोडक्शन डिजाइनर हैं, बल्कि निर्देशन में भी अपनी रचनात्मकता दिखा चुके हैं। उनकी वेब सीरीज़ ‘किसानियत’ और फिल्म ‘द लॉस्ट गर्ल’ उनके निर्देशन की गहराई और सोच को प्रकट करती हैं। साथ ही, वे युवाओं को प्रेरित करने के लिए आर्ट कॉलेजों और सेमिनारों में भी सक्रिय रहते हैं।
बिहार के मुंगेर से लेकर झारखंड के बोकारो और अब मुंबई तक की यह यात्रा साबित करती है कि अगर लगन सच्ची हो, तो सीमाएँ कभी रुकावट नहीं बनतीं। प्रभात ठाकुर का मानना है — “फिल्मी कला में सफलता तभी मिलती है जब मेहनत, तकनीकी समझ और कल्पना — तीनों का संगम हो।” और शायद यही जज़्बा Production Designer Prabhat Thakur को ‘जटाधारा’ के माध्यम से नई ऊँचाइयों तक ले जा रहा है।