पवन मल्होत्रा भारतीय सिनेमा के उन अभिनेताओं में से हैं जिन्होंने अपने दम पर सिनेमा की दुनिया में खूब नाम कमाया है। दिल्ली में जन्मे पवन ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत छोटे पर्दे से करी, लेकिन उनके जुनून और हौसले ने जल्द ही उन्हें बड़े पर्दे का एक अनमोल सितारा बना दिया। उन्होंने अपने हर किरदार को बखूबी निभाया है और आज उन्होंने इसी मेहनत के बल पर हरियाणवी फिल्म ‘फौजा’ के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का नेशनल अवार्ड अपने नाम कर लिया है।
इससे पहले पवन ने एक इंटरव्यू में बताया था की उन्हें पहली बार फिल्म फकीर (1998) के लिए नॉन फीचर कैटेगरी में नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया था। उन्होंने आगे बताया कि उनकी फिल्म ‘बाग बहादुर’ और ‘सलीम लंगड़े पर मत रो’ को भी नेशनल अवार्ड दिए गए थे। हालांकि इन फिल्मों में मुख्य किरदार निभाने के बावजूद उन्हें कोई अवार्ड नहीं मिला था, जिस बात का उन्हें उस समय थोड़ा बुरा भी लगा था।
एक्टर ने कहा, “बाघ बहादुर को बेस्ट फिल्म का अवॉर्ड मिला और सलीम लंगड़े पे मत रो को भी बेस्ट हिंदी फिल्म अवॉर्ड मिला। लेकिन मुझे कोई अवॉर्ड नहीं मिला। तो जाहिर है कि एक बार को इंसान को बुरा तो लगता है। बहुत से लोग आए और उन्होंने मेरे बारे में ज्यूरी के सदस्यों से बात की। मेरे नाम पर बड़ी लड़ाई भी हो गई थी। तो मैं बस मामले को शांत करता और चीजों को वो जैसी हैं वैसा छोड़ देता था। लेकिन फिर भी मुझे लगता था कि मैंने लायक होते हुए भी नेशनल अवॉर्ड नहीं जीता।”
एक्टर ने आगे कहा, ‘लेकिन फिर मुझे आखिरकार फिल्म फकीर के लिए अवॉर्ड मिला था। फिल्म चिल्ड्रन ऑफ वॉर के लिए मुझे फ्रांस में बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला था। फिर मुझे एक तेलुगू फिल्म के लिए बहुत से अवॉर्ड्स मिले। लेकिन बॉम्बे में मुझे कोई अवॉर्ड नहीं मिला। ईमानदारी से कहूं तो मुझे बॉम्बे अवॉर्ड्स की कोई खास चिंता नहीं है। मैं अपनी फिल्म के 200 करोड़ कमाने के बारे में नहीं सोचता हूं। मुझे इस बात से ज्यादा फर्क पड़ता है कि मेरी जिंदगी सहज और शांति है या नहीं, जिससे मैं भगवान की दया से अच्छी फिल्में कर पाऊं और मैं उन्हें अच्छे से कर सकूं। मैं एक फिल्म शुरू करने से पहले भगवान से दुआ मांगता हूं, क्योंकि मुझे नर्वस फील होता है। मैं चाहता हूं कि मैं अच्छा परफॉर्म करूं।”