मेहरानगढ़ दुर्ग जोधपुर (Mehrangarh Fort Jodhpur) की चिड़ियाटूँक पहाड़ी (पंचेटिया पर्वत) पर स्थित है। जोधपुर के किले का निर्माण जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने 1459 ईस्वी में करवाया। मोर की आकृति का होने के कारण इस किले को मयूरध्वज गढ़ या मोरध्वज गढ़ तथा गढ़ चिंतामणि भी कहते हैं। मेहरानगढ़ का किला राठौड़ राजपूतों के अद्भुत साहस, शौर्य, रण कौशल एवं कला और वास्तुकला की मर्मज्ञता को प्रकट करने वाला अद्वितीय किला है।
राव जोधा द्वारा चिड़ियानाथ मोगी की तपोस्थली चिड़िया झरवर नामक स्थान पर निर्मित जोधपुर दुर्ग लगभग 150 मीटर ऊंची बलुआ पत्थर की पहाड़ी पर तराश कर सीधी, चिकनी दीवारों पर इसका निर्माण किया गया है। इस किले से मारवाड़ का अधिकतम भाग दिखाई देता है तथा जोधपुर और नागौर के बीच यही दृढ़,मजबूत एवं रणबांकुरे राठौड़ों का एकमात्र किला है। इस किले से संपूर्ण जोधपुर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।
सुरक्षा के अचूक प्रहरी दरवाजे
जोधपुर शहर के 7 दरवाजे-सोजती गेट,मेड़ता गेट,जालोरी गेट सिवाना गेट, नागौर गेट एवं चांदपोल गेट इस किले की सुरक्षा पंक्ति के अचूक प्रहरी रहे हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल Mehrangarh Fort Jodhpur
इस किले में देखने योग्य किलकिला,शुभु वान तथा गजनी खान की तोपें,जयपोल, फतेह पोल, लोहपोल, अमृतपोल, सूरजपोल ,खांडी पोल ,गोपालपोल,तथा राव जोधा जी का फलसा है। श्रृंगार चौकी अजायबघर, महल, मोती महल, फूल महल, फतेह महल ,दौलत खाना, अजीत विलास, तखत विलास, चामुंडा माता का मंदिर, ज्वालामुखी की माता का मंदिर, पातालिया कुआ और चोके लाब कुआं पर्यटकों के मुख्य आकर्षण का केंद्र है।
इस दुर्ग के साथ वीर शिरोमणि दुर्गादास, कीरत सिंह सोडा और दो अतुल पराक्रमी क्षत्रिय योद्धाओं-धन्ना और भींवा के पराक्रम, बलिदान स्वामी भक्ति और त्याग की गौरव गाथा जुड़ी हुई है। लोहापोल के पास जोधपुर के अतुल पराक्रमी वीर योद्धाओं धन्ना और भींवा की 10 खंभों की स्मारक छतरी है तथा वीर कीरत सिंह सोडा की छतरी इसके पूर्व में प्रवेश द्वार जयपोल के बाएं ओर विद्यमान है। इस दुर्ग में शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित मस्जिद,महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश पुस्तकालय तथा मेहरानगढ़ संग्रहालय दर्शनीय है।
जोधपुर दुर्ग का स्थापत्य अनूठा है इस दुर्ग के महल लाल पत्थर से बने हुए हैं महाराजा सूर सिंह ने 1602 ईस्वी में दुर्ग में भव्य मोती महल का निर्माण करवाया जो सुनहरे अलंकरण एवं सजीव चित्रांकन के लिए जाना जाता है। महाराजा अभय सिंह जी ने 1724 में फूल महल का निर्माण करवाया। जोधपुर से मुगल खालसा हट जाने की स्मृति में महाराजा अजीतसिंह ने इसमें फतेह महल का निर्माण करवाया।
दुर्ग के अंदर सिणगार चौकी है जहां महाराजा का राजतिलक होता था। यह दौलत खाना के आंगन में महाराजा तखत सिंह द्वारा निर्मित की गई थी।
प्रमुख मंदिर
राव जोधा ने दुर्ग निर्माण के समय इसमें चामुंडा माता का मंदिर बनवाया था। अन्य मंदिरों में आनंद धन जी का मंदिर एवं मुरली मनोहर जी का मंदिर मुख्य है। जोधपुर के राठौड़ वंश की कुलदेवी नागणेची माता का मंदिर भी मेहरानगढ़ दुर्ग के अंदर विद्यमान है दुर्ग में रानी सर तथा पदम सर तालाब जल के प्रमुख साधन है।
प्रमुख आक्रमण
राव मालदेव के शासनकाल में दिल्ली के अफगान सुल्तान शेरशाह सूरी ने गिरी सुमेल के युद्ध में मालदेव को हराकर जोधपुर दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया था लेकिन कुछ समय बाद ही मालदेव ने दोबारा इस पर अपना अधिकार कर लिया। राव मालदेव के पुत्र राव चंद्रसेन के समय सम्राट अकबर ने हसन कुली खां के नेतृत्व में सेना भेजकर सन 1565 में उस पर अधिकार कर लिया। मोटा राजा राव उदय सिंह द्वारा अकबर की अधीनता स्वीकार करने के बाद यह दुर्ग उन्हें सौंप दिया गया।
तोपें: मेहरानगढ़ में लंबी दूरी तक मार करने वाली तीन विशालकाय तोपे थी।
* किलकिला तोप -महाराजा अजीत सिंह द्वारा इसका निर्माण किया गया था।
* शंभू बाण तोप- यह तोप महाराजा अभयसिंह ने सर बुलंद खान से छीनी थी।
* गजनी तोप- महाराजा गज सिंह ने सन1607 में जालौर विजय में हासिल की थी।
* अन्य तोपे- नागपली, नुसरत, गजक, गुब्बारा।
प्रसिद्ध विदेशी लेखक लॉर्ड शिवलिंग ने इस दुर्ग के निर्माण को परियों एवं देवताओं द्वारा निर्माण की संज्ञा दी थी, दुर्ग की भव्यता के बारे में निम्न दोहा प्रसिद्ध है-
‘सब ही गढा शिरोमणि,अति ही ऊंचो जाण।’
अनड पहाड़ा ऊपरी, जबरौ गढ़ जोधाण।।
रिलेटेड आर्टिकल : रणथंभौर का किला,दुनिया के सबसे सुरक्षित किलो में से एक (Ranthambore Fort)