विचार मंच अमिता सिंह : महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य है समाज में महिलाओं के वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना अर्थात महिलाओं का शक्तिशाली होना। महिलाएं शक्तिशाली होंगी तो वह अपने जीवन से जुड़े प्रत्येक फैसले स्वयं ले सकती है। ऐसी महिलाएं परिवार और समाज को विकास की राह पर ले जाती हैं।महिलाओं को दिए गए अधिकार महिला सशक्तिकरण का आधार है। सत्र 2020 ई. में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने आगाह किया था कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के विनाशकारी सामाजिक और आर्थिक प्रभावों से दुनिया भर में महिलाएँ व लड़कियाँ बुरी तरह प्रभावित हुई हैं|उन्होंने ज़ोर देकर कहा था कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में वर्षों व कई पीढ़ियों से हो रही प्रगति को कोरोना वायरस संकट की भेंट ना चढ़ने देने के लिये व्यापक प्रयास करने की आवश्यकता होगी|वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण पहले ही लैंगिक समानता और महिला अधिकारों पर सीमित व नाज़ुक प्रगति को ठेस पहुँच चुकी है|महिला अधिकारों की सुरक्षा की को बनाए रखना के लिए इन अधिकारों पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है – महिलाओं को दिए गए अधिकार जो प्रत्येक महिला को शक्तिशाली बनाते हैं,वे इस प्रकार हैं – समान वेतन का अधिकार,कार्य-स्थल में उत्पीड़न के खिलाफ कानून,कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार,संपत्ति पर अधिकार,गरिमा और शालीनता के लिए अधिकार|महिला एवं बाल विकास मंत्रालय,भारत सरकार महिलाओं के विकास में निरंतर अग्रसर है।दुनिया की हर महिला वो सब कुछ हासिल कर सकती है,जिसे पाने का वो ख्वाब देखती है|किसी महिला को मुश्किल हालातों का कितना भी सामना करना पड़े वो अपनी मंजिल तक पंहुच ही जाती है|महिलाओं को अपने अंदर की ताक़त का एहसास होना चाहिए|महिलाओं का आत्मबल सृष्टि की खूबसूरती का परिचायक है|तभी महिलाएं घर से लेकर राष्ट्र तक के निर्माण में अहम् भूमिका निभाती हैं|अन्याय के खिलाफ महिलाएं अपने घरों से बाहर निकलें और अपनी आवाज़ बुलंद करें| अगर महिलाएं अपने घरों से बाहर नहीं निकलेंगी,तो वो अपनी ताक़त दुनिया को कैसे दिखा पाएंगी ? महिलाओं को संघर्ष जारी रखना चाहिए|महिलाओं को नया रचते रहना चाहिए|नारी होने का गुण या भाव ही नारीत्व कहलाता है|नारीत्व नवीनता (नए) का द्योतक है |नारी किसी भी समाज के भविष्य का निर्धारण करती है|महिलाओं को अन्याय का विरोध करते रहना चाहिए|महिलाओं को अन्याय के खिलाफ कभी भी अपने विचारों से समझौता नहीं करना चाहिए| भीड़ का हिस्सा होने वाली महिलाएँ कोई तब्दीली नहीं ला सकतीं|वर्ष 2020 में कोविड -19 की वजह से दुनिया बहुत बदल गई|लेकिन,महिलाओं के लिए दुनिया हर रोज़ बदलती रहती है|महिलाओं ने परिचर्चाओं को बदला है और अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाई है |ये सिलसिला आने वाली पीढ़ियों में भी जारी रहेगा|कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अचानक एकदम रोक दिया|इससे हमें अपने बारे में सोच-विचार करने और एक बेहतर इंसान बनने का मौक़ा मिला|महिलाओं को विकास करने के लिए लगातार कोशिश जारी रखनी होगी |महिलाओं के विकास से ही बेहद नाज़ुक दुनिया को स्थायी बनाया जा सकता है|हम तभी हारते हैं,जब हम उम्मीद का दामन छोड़ देते हैं| महिलाएं अपने विचारों के लिए लड़ाई जारी रखें|ख़्वाब देखने का साहस करें|उम्मीद का दामन न छोड़ें|सत्र 2020 महिलाओं के लिए कई मायनों में बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है|आप मुश्किलों को अपनी राह के आड़े मत आने दें|हर संभावना को तलाशते रहें|हर दिन कुछ समय अपने आपको भी दें| अगर कोई महिला कुछ हासिल करने की ठान लेती है,तो फिर उसे कोई नहीं रोक सकता| विश्व में प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है|अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस(इंटरनेशनल विमेंस डे) सत्र 2021 ई. का प्रसंग (थीम) है – “महिला नेतृत्व: कोविड-19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना” (“वीमेन इन लीडरशिप : अचीविंग एन इक्वल फ्यूचर इन ए कोविड -19 वर्ल्ड ”)। यह थीम कोविड -19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों, इनोवेटर आदि के रूप में दुनिया भर में लड़कियों और महिलाओं के योगदान को रेखांकित करती है|किसी ने क्या खूब कहा है – हर सफल इंसान के पीछे एक महिला का हाथ होता है, इसी प्रकार राष्ट्र निर्माण में एक नहीं बल्कि सैकड़ों महिलाओं का सहयोग होता है।महिलाएं सशक्त होंगी तभी देश बनेगा महाशक्ति।महिलाओं के लिए सफलता की सीमा आकाश तक सीमित नहीं,बल्कि उससे आगे का जहां इनका है। ये जोश से भरी हुईं सशक्त और आत्मनिर्भर महिलाएं,हमारे आसपास दिखाई देने वालीं सामान्य महिलाओं की तरह ही हैं, लेकिन इन महिलाओं की गौरव गाथा इन्हें कुछ खास बनाती है।
कोरोना से बचाव और सुरक्षा के कार्य में जहां अधिकारी-कर्मचारी,स्वास्थ्य विभाग का अमला, पुलिसकर्मी,जन-प्रतिनिधि,स्वयं सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि समर्पित भाव से जुटे रहे,वही इस लड़ाई में मध्य प्रदेश के नीमच जिले के ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएँ भी अपना योगदान देती रहीं ।नीमच जिले में एनआरएलएम द्वारा गठित 71 महिला स्व-सहायता समूहों की महिलाएं मॉस्क निर्माण कर जरुरतमंदों को वितरित कर रहीं। कोरोना संकट का सबसे ज्यादा भार परिवार में महिलाओं पर आ पड़ा|कोरोना के भारी संकट में पूरे परिवार में यदि किसी पर सबसे ज्यादा संकट आया तो वह घर की महिला ही है जिसकी भूमिका अचानक बहुत बढ़ गई और घर में न केवल उसके काम बढ़े बल्कि उसके अधिकार क्षेत्र में दूसरे लोगों का अनधिकृत प्रवेश भी बढ़ गया। लॉकडाउन में बाहर सब कुछ बंद था तो सबको घर पर ही रहने की मजबूरी थी। लॉकडाउन ने महिलाओं के काम के बोझ को बढ़ा दिया था। महिलायें पुरुषों की तुलना में किसी भी संकट में ज्यादा सतर्क और सक्रिय होती हैं। बेहतर प्रबंधक और बुरे हालात में भी बड़ी हिम्मत से परिवार और समाज को संभाले रहती हैं।कोरोना के इस संकट में उन्होंने कुछ अतिरिक्त जिम्मेवारियों का वहन किया |इक्कीसवीं सदी में भौतिकवादी परिवेश और बाजारवादी ताकतों के दबाव में नारी की छवि में तेजी से बदलाव हुआ। इक्कीसवीं सदी में जितनी बड़ी संख्या में महिलाएं शिक्षक, इंजीनियर, डॉक्टर और वैज्ञानिक बनकर उच्च पदों पर पहुंचीं और रोजगार के विविध क्षेत्रों में सक्रिय हुईं,वह अचंभित करने वाली है। महिलाओं ने आइटी, प्रशासन,शिक्षा और विज्ञान जैसे अनेक क्षेत्रों में अपनी भागीदारी बढ़ाकर पहचान बनाई है| महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को समाज में स्थापित करने से महिलाएं मजबूत बनेंगी। वर्ष 2020 महिला अधिकारों की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण वर्ष माना जा सकता है।गौरतलब है कि यह महिला अधिकारों और समाज के विभिन्न स्तरों पर महिलाओं की भूमिका से जुड़ी दो बड़ी घटनाओं की 25वीं वर्षगाँठ का वर्ष रहा। सत्र 2020 में‘भारत में महिलाओं की स्थिति पर समिति’(सी एस डब्लू आई) द्वारा संयुक्त राष्ट्र को‘समानता की ओर’या‘टुवर्डस इक्वालिटी’ (टुवर्ड्स इक्वलिटी) नामक रिपोर्ट को प्रस्तुत किये हुए लगभग 25 वर्ष पूरे हो गए थे। इस रिपोर्ट में भारत में महिलाओं के प्रति संवेदनशील नीति निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए लैंगिक समानता पर एक नवीन दृष्टिकोण प्रदान करने का प्रयास किया गया था। साथ ही वर्ष 2020 में ’बीजिंग प्लेटफार्म फॉर एक्शन’ की स्थापना की 25वीं वर्षगाँठ भी थी,जो समाज में महिलाओं की स्थिति और सरकारों के नेतृत्त्व में उनके सशक्तीकरण के प्रयासों के विश्लेषण का एक बेंचमार्क है। कोविड-19 के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में भारी वृद्धि देखी गई थी,साथ ही इस दौरान महिलाओं के लिये शिक्षा और रोज़गार की पहुँच बाधित हुई जो पिछले कई वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में हुए सुधार के प्रयासों पर नकारात्मक प्रभाव डाल गया।
भारत में विभिन्न सार्वजनिक (आशा कार्यकर्त्ता आदि) और निजी क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं को उनके कार्य के अनुरूप अपेक्षा के अनुरूप कम भुगतान दिया जाना एक बड़ी चुनौती रही। एक असाधारण वर्ष (2020) में जब पूरी दुनिया में अनगिनत महिलाओं ने दूसरों की मदद करने के लिए कुर्बानियां दी। ऐसी महिलाओं के बलिदान और काम के सम्मान में,जिन्होंने बदलाव लाने की कोशिश में अपनी जान गंवा दी, मेरी तरफ से उनको हृदयपूर्वक श्रद्धांजलि|ऐसी महिलाएं जिन्होंने वर्ष 2020 ई. के हर गुज़रते दिन के साथ दुनिया पर कोई न कोई असर छोड़ा|वो महिलाएं इस प्रकार हैं – हॉउदा अबोउज़ या खटेक, मोरक्को की एक रैपर हैं|जो अपने ख़ास अंदाज़ और सुरीले गानों के लिए मशहूर हैं|वो महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता के लिए आवाज़ उठाईं|मोरक्को का संगीत उद्योग पुरुषों के ज़बरदस्त दबदबे वाला है|ऐसे में हॉउदा अपने संगीत को बदलाव का ज़रिया मानती हैं| इसाइवानी भारत की एक मशहूर गायिका हैं|गाना संगीत,तमिलनाडु में उत्तरी चेन्नई के कामगारों के बीच से उभरी एक ख़ास संगीत विधा है|इसाइवानी ने मर्दों के दबदबे वाले इस क्षेत्र में गीत गाते हुए और शो करते हुए कई बरस बिताए हैं|अन्य लोकप्रिय पुरुष गायकों के साथ,एक महिला का उसी मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत करना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि रही|भारत की इसाइवानी ने सदियों पुरानी एक परंपरा को बड़ी कामयाबी के साथ तोड़ा है|आज इसाइवानी के कारण ही दूसरी युवा महिला गाना गायिकाएं आगे आकर अपने हुनर को पेश कर रही हैं|वाद अल कतीब सीरिया की एक कार्यकर्ता,पत्रकार और अवार्ड विजेता फिल्म निर्माता हैं|कतीब ने अलेप्पो शहर के बारे में अपनी न्यूज़ रिपोर्ट के लिए दुनिया में कई पुरस्कार जीते हैं|इनमें प्रतिष्ठित एमी अवार्ड भी शामिल हैं|वर्ष 2020 में उनकी पहली फीचर फिल्म’समा’के लिए बेस्ट डॉक्यूमेंट्री का बाफ्टा (बाफ्टा) अवार्ड जीता था|उन्हें एकेडमी अवार्ड्स में बेस्ट डॉक्यूमेंट्री फीचर के लिए भी नामांकित किया गया था|वर्ष 2016 में वाद अल-कतीब को गृह युद्ध के चलते अलेप्पो शहर छोड़ना पड़ा था| अब वाद अपने शौहर और दो बेटियों के साथ लंदन में रहती हैं|लंदन में वो चैनल-4 न्यूज़ के लिए काम करती हैं|इसके अलावा वो महिला अधिकारों के लिए एक्शन फॉर समा नाम से एक समूह भी चलाती हैं| मानसी जोशी एक भारतीय पैरा-एथलीट हैं|वो पैरा बैडमिंटन की मौजूदा विश्व चैंपियन हैं|जून 2020 में बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन ने उन्हें एस एल 3 सिंगल्स मुक़ाबलों में विश्व की नंबर 2 रैंकिंग पर रखा था|मानसी एक इंजीनियर भी हैं,और बदलाव के लिए काम करती हैं|मानसी चाहती हैं कि भारत में दिव्यांगता और पैरा स्पोर्ट्स के बारे में लोगों की राय बदले|टाइम पत्रिका ने हाल ही में उन्हें अगली पीढ़ी की नेता के तौर पर अपनी सूची में शामिल किया था|वो टाइम के एशिया एडिशन में भारत में दिव्यांग लोगों के अधिकारों की कार्यकर्ता के तौर पर शामिल की गई थीं| रिद्धिमा पांडे एक पर्यावरण कार्यकर्ता हैं,जिन्होंने नौ साल की उम्र में जलवायु परिवर्तन को लेकर क़दम न उठाने पर भारत सरकार के ख़िलाफ़ मुक़दमा दायर किया था|वर्ष 2019 में 15 अन्य बाल याचिकाकर्ताओं के साथ रिद्धिमा ने संयुक्त राष्ट्र में पांच देशों के ख़िलाफ़ केस दायर किया था|रिद्धिमा दूसरे छात्र-छात्रों को हर स्तर पर सशक्त बनाने में मदद कर रही हैं,जिससे कि वो अपने भविष्य और विश्व की जैव विविधता के लिए संघर्ष कर सकें| रिद्धिमा अपने और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं| नेपाल की रहने वाली सपना रोका मगर,काठमांडू पहुंचीं|वहां वो ऐसे संगठन के साथ जुड़ गईं, जो लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करता है|जिन लोगों की मौत कोविड-19 से हुई,उनके शवों का अंतिम संस्कार की ज़िम्मेदारी,सख़्ती से नेपाल की सेना के हवाले कर दी गई| सपना का संगठन सड़कों,गलियों और मुर्दाघरों में पड़ी लावारिस लाशों को उठाता और उन्हें पोस्ट मॉर्टम के लिए अस्पताल ले जाता|अगर फिर भी लाश पर 35 दिनों तक कोई दावा नहीं करता,तो फिर उनका संगठन लाश को श्मशान ले जाता और दागबत्ती परंपरा के अनुसार उनका अंतिम संस्कार करता था|अफ़ग़ानिस्तान में एक महिला का नाम सार्वजनिक रूप से लेने पर नाक-भौं सिकोड़ी जाती है|किसी के जन्म प्रमाण पत्र में केवल पिता का नाम ही लिखा जाता था|जब कोई महिला शादी करती थी,तो शादी के आमंत्रण पत्र में महिला का नाम नहीं छापा जाता था|जब कोई महिला बीमार होती थी,तो दवा के पर्चों पर भी उसका नाम नहीं होता,और जब अफ़ग़ानिस्तान में किसी महिला की मौत हो जाती थी,तो न तो उसका नाम मृत्यु प्रमाण पत्र में दर्ज किया जाता और न ही उसकी क़ब्र के पत्थर पर नाम लिखा जाता| महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकार से वंचित किए जाने से खीझ कर,लालेह ओस्मानी ने व्हेयर इज़ माय नेम अभियान की शुरुआत की थी| तीन साल के संघर्ष के बाद,वर्ष 2020 में जाकर अफ़ग़ान सरकार राष्ट्रीय पहचान पत्रों और बच्चों के जन्म प्रमाण पत्रों में महिलाओं का नाम भी लिखने को राज़ी हुई| हयात एक पत्रकार हैं,महिलावादी और मानववादी कार्यकर्ता भी हैं| वो लेबनान के पहले महिलावादी संगठन फी-मेल की सह-संस्थापक भी हैं|हयात एक ज़िद्दी और न झुकने वाली महिला हैं|उनका मिशन लड़कियों और महिलाओं की पहुंच न्याय,सूचना,संरक्षण और मानव अधिकारों तक बनाना है|हयात अपने संदेश को तमाम मंचों के माध्यम से लगातार दूसरों तक पहुंचाने में जुटी हुई हैं|वो देशव्यापी मार्च का आयोजन करती हैं,और भ्रष्ट व पुरुषवादी हुकूमत को चुनौती देने के लिए देश की जनता को एकजुट करते हुए परिवर्तन की मांग करती हैं| साना मैरिन, फिनलैंड की प्रधानमंत्री हैं|वो फिनलैंड की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता हैं| वो जिस गठबंधन सरकार का नेतृत्व करती हैं,उसका गठन चार ऐसे दलों को मिलाकर किया गया है, जिन सबकी बागडोर महिलाओं के हाथ में है: मारिया ओहिसालो (ग्रीन लीग),ली एंडरसन (लेफ्ट गठबंधन),एना-माहा हेनरिक्सन (स्वीडिश पीपुल्स पार्टी) और एन्निका सारिक्को (सेंटर पार्टी)| फिनलैंड ने जिस तरह से अपने यहां कोविड-19 महामारी से निपटने की कोशिश की है|उसकी पूरी दुनिया में तारीफ़ हुई है|नवंबर 2020 तक,यूरोपीय देशों में फिनलैंड सबसे कम संक्रमण दर वाले देशों में से एक है| दक्षिण अफ्रीका में जन्मी,इश्तर लखानी एक महिलावादी कार्यकर्ता हैं और वो ख़ुद को परेशानी खड़ी करने वाली कहती हैं|दक्षिण अफ्रीका की रहने वाली इश्तर,पूरी दुनिया में सामाजिक न्याय के लिए काम करने वाले संगठनों,आंदोलनों और नेटवर्क के साथ मिलकर काम करती हैं|उन्हें समर्थन मुहैया कराती हैं जिससे कि मानव अधिकारों की वकालत के लिए उन्हें मज़बूती प्रदान कर सकें|इस साल उन्होंने वैक्सीन को मुक्त करो अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है|इस अभियान की शुरुआत सेंटर फॉर आर्टिस्टिक एक्टिविज़्म फ़ॉर एसेंशियल मेडिसिन (यू ए ई एम) ने की थी|अब वो दूसरे लोगों के साथ मिलकर सिर्फ़ एक लक्ष्य के लिए काम कर रही हैं|वो ये है कि दुनिया में हर इंसान को कोविड-19 की वैक्सीन उचित दर पर मिले और दुकानों तक जाकर इसे आसानी से ख़रीदा जा सके |
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने महिला विकास पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है। भारत की महिलाएं राष्ट्र की प्रगति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और सरकार उनके योगदान और क्षमता को पहचानती है। सरकार ने महिला सशक्तिकरण को लेकर कई मजबूत कदम उठाए हैं। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से लेकर बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं और उनके दैनिक जीवन और उनकी दीर्घकालिक संभावनाओं को सुधारने के लिए कई पहल की है। केंद्र सरकार ने अपने कामकाज की बदौलत एक तरह से महिलाओं को एक साथ जोड़ दिया है। अतएव हम कह सकते है की भारतीय महिलाओं की गौरव गाथा ने राष्ट्र को विश्व पटल पर चरितार्थ किया। इसलिए हम कह सकते हैं कि कोविड -19 की दुनिया में महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा राष्ट्र के विकास के लिए अति महत्वपूर्ण है ।
लेखिका : अमिता सिंह शोध छात्रा(एजुकेशन) शुएट्स,नैनी,प्रयागराज (उत्तर प्रदेश )