जैसलमेर री ख्यात के अनुसार सोनारगढ़ या सोनगढ़ के नाम से प्रसिद्ध किला (Jaisalmer Fort) की नीव श्री कृष्ण के वंशज भाटी रावल जैसल ने 12 जुलाई 1155 को रखी। उसकी मृत्यु होने पर उसके पुत्र उत्तराधिकारी शालिवाहन द्वितीय ने इस दुर्ग का अधिकांश निर्माण करवाया।
जोधपुर से लगभग 285 किलोमीटर पश्चिम में स्वर्ण नगरी जैसलमेर का पीले पत्थर से बना ‘स्वर्ण किला’ राजस्थान के उत्तरी पश्चिमी भाग में प्रवेश का प्रमुख द्वार माना जाता रहा है। 75 मीटर ऊंची त्रिकूट पहाड़ी पर 99 बुर्जो वाला यह किला राजस्थान का अत्यंत प्रसिद्ध किला है।
सोनगढ़ दुर्ग की खासियत यह है कि सूर्य की प्रथम किरण के साथ ही यह दुर्ग सोने की भांति चमकने लगता है जो पर्यटक को सहज में ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। इसीलिए इस किले को सोनगढ़ या सोनारगढ़ और स्वर्ण किला कहते हैं। यह किला सुदृढ़ता,दुर्गमता,अभेद्यता एवं सुरक्षा की दृष्टि से तो बेजोड़ है ही वरन शिल्प कला,मूर्तिकला वास्तु कला एवं स्थापत्य कला की दृष्टि से भी अद्भुत किला है।
जैसलमेर किले की एक खास बात यह भी है कि यह बिना चूने के सिर्फ पत्थर पर पत्थर रखकर बनाया गया है जो इसके स्थापत्य की अनूठी विशेषता है। जैसलमेर का दुर्ग विश्व का एकमात्र ऐसा किला है जिसकी छत लकड़ी की बनी हुई है महलों के दरवाजे व छतों को सुरक्षित रखने हेतु गोमूत्र का लेप किया जाता था।
इसके घुमावदार मार्ग में सूरजपोल, गणेशपोल,हवापोल आदि दरवाजे हैं।हवा पोल पर पहुंचते ही ठंडी हवा के झोंकों से पर्यटक की संपूर्ण थकान समाप्त हो जाती है। पश्चिम में अमर सागर पोल तथा पूर्व में घडसीसर पोल है।
सोनारगढ़ किले में रंग महल, मोती महल,जवाहर विलास महल,बादल महल गज विलास,अंतापुर के कलात्मक झरोखे,भगवती देवी का मंदिर, 7 मंजिल का भव्य राज महल स्थापत्य के बेजोड़ नमूने,तीन जैन मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर जिनके पत्थरों पर बारिक खुदाई, पारदर्शक जाली,झरोखे,लकड़ी पर खुदा लकड़ी पर खुदाई का कार्य,कलात्मक छज्जे,झरोखे विचित्र एवं विशिष्ट भाव भंगिमा दर्शाने वाले दुर्लभ भित्ति चित्र और महाराव वेरीसाल द्वारा निर्मित बादल विलास बुर्ज, सतियो की सीढ़ियां आदि आकर्षण का केंद्र है। यहां जैसूल कुआं भी है जिसे अर्जुन की प्यास बुझाने के लिए श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से खोदा था।
किले की शौर्य गाथा में ढाई ‘शाके'( जोहर)पड़े हैं। पहला महारावल जैतसिंह की अलाउद्दीन खिलजी के हाथों हार होने पर उनकी पत्नी महारानी रत्ना ने बाईस हजार राजपूतानीयो के साथ जौहर की ज्वाला में कूद गई थी किया। दूसरा शाका दुदा और तिलाकसी के समय मुगल बादशाह फिरोजशाह तुगलक की सेना के हाथों भूख प्यास से मरते वीर भाटी राजपूत सरदारों ने केसरिया बाना पहन कर अपनी आन बान शान पर प्राण न्यौछावर किए और महारानी दासियों और स्त्रियों के साथ 16,000 वीरांगनाओं ने जौहर की ज्वाला में प्राण न्योछावर कर दिए।
तीसरा ‘शाका’ महारावल लूणकरण के शासनकाल में ,उन्हीं के विश्वासपात्र अमीर अली ने विश्वासघात कर महारावल को मौत के घाट उतार दिया किंतु उस वक्त राजकुमार शिकार पर गए थे वह गुप्त मार्ग से लौटे तथा अमीर अली की हत्या कर दी जिससे किला शत्रु के हाथों में तो नहीं जा सका किंतु महारानीयो और वीरांगनाओं को उनकी सतीत्व की रक्षा के लिए रणबांकुरो ने मौत के घाट उतार दिया वह आधा किंतु तीसरा शाका कहलाया।
जैसलमेर दुर्ग राजस्थान में चित्तौड़गढ़ दुर्ग के बाद दूसरा सबसे बड़ा ‘लिविंग फोर्ट’ है। दुर्ग का दोहरा परकोटा कमरकोट कहलाता है। जैसलमेर के बारे में कहावत प्रसिद्ध है कि पत्थर के पैर व लोहे के शरीर तथा काठ के घोड़े पर सवार होकर ही इस दुर्ग में पहुंचा जा सकता है इस संबंध में निम्न दोहा प्रसिद्ध है।
घोड़ा कीजे काठ का, पिंड कीजे पाषाण।
बख्तर कीजे लोह का, तब देखो जैसाण।।