विचार मंच डॉ शंकर सुवन सिंह : प्रेम का प्रतीक है नारी। धैर्य,त्याग,सर्मपण और लज्जा का दूसरा नाम ही नारी है।नारी सम (अच्छी) परिस्थितियों में कोमल है तो वहीँ विषम परिस्थितियों में शक्तिस्वरूपा भी हैं।नारी सीता,गायत्री,सरस्वती,लक्ष्मी,देवी स्वरूपा है तो वहीँ काली देवी और दुर्गा देवी स्वरूपा भी है। नारीत्व में तन,मन,धन तीनो का समावेश है|राष्ट्र का अभिमान है “नारी”। राष्ट्र की शान है नारी। भारतीय परिवेश व परिधान की शोभा है नारी। नर से नारायण की कहावत को चरितार्थ करती है नारी। मानवता की मिशाल है नारी। नारी से ब्रह्माण्ड का अस्तित्व है। सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक रूप से महिलाओं को शक्ति प्रदान करना ही महिला सशक्तिकरण है।
सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक रूप से सशक्त महिलाएं समाज को विकास की राह पर ले जाती हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय,भारत सरकार महिलाओं के विकास में निरंतर अग्रसर है। महिलाओं को दिए गए अधिकार जो प्रत्येक महिला को शक्तिशाली बनाते हैं,वे इस प्रकार है-समान वेतन का अधिकार – समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता। कार्य-स्थल में उत्पीड़न के खिलाफ कानून-यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत, महिलाओं को वर्किंग प्लेस पर हुए यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का पूरा हक है। केंद्र सरकार ने भी महिला कर्मचारियों के लिए नियम लागू किए हैं,जिसके तहत वर्किंग प्लेस पर यौन शोषण के शिकायत दर्ज होने पर महिलाओं को जांच लंबित रहने तक 90 दिन का पेड लीव दी जाएगी। कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार-भारत के हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह एक महिला को उसके मूल अधिकार‘जीने के अधिकार’का अनुभव करने दें। गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पी सी पी एन डी टी) अधिनियम,1994 भारत में कन्या भ्रूण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए भारत की संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है।इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक ‘पीएनडीटी’एक्ट 1996,के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जांच पर पाबंदी है।ऐसे में अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी कराने वाले जोड़े या करने वाले डाक्टर, लैब कर्मी को तीन से पांच साल सजा और 10 से 50 हजार जुर्माने की सजा का प्रावधान है। संपत्ति पर अधिकार – हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष दोनों का बराबर हक है।गरिमा और शालीनता के लिए अधिकार-किसी मामले में अगर आरोपी एक महिला है तो उस पर की जाने वाली कोई भी चिकित्सा जांच प्रक्रिया किसी महिला द्वारा या किसी दूसरी महिला की उपस्थिति में ही की जानी चाहिए।अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस,महिला सशक्तिकरण के लिए उत्प्रेरक का कार्य करता है।अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को, महिलाओं के आर्थिक,राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान,प्रशंसा और प्यार प्रकट किया जाता है।अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ,महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाने के मकसद से भी मनाया जाता है।दुनियाभर के हर कोने में इस दिन उन महिलाओं को और उनके योगदान को याद किया जाता है जिन्होंने अपने क्षेत्र में सफलता हासिल की हो। अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर, यह दिवस सबसे पहले 28 फरवरी 1909 को मनाया गया था।
इसके बाद यह फरवरी महीने के आखिरी रविवार के दिन मनाया जाने लगा। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अंतर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख उद्देश्य महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाना था क्योंकि उस समय अधिकतर देशों में महिलाएं वोट नहीं दे सकती थीं। 1917 में रूस की महिलाओं ने,महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिए हड़ताल पर जाने का फैसला किया था। यह हड़ताल भी बिल्कुल ऐतिहासिक थी। जार ने सत्ता छोड़ी, अंतरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिया। उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनों की तारीखों में थोड़ा अंतर था। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक 1917 की फरवरी का आखिरी रविवार 23 फरवरी को था जबकि ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन 8 मार्च तारीख थी। इस समय पूरी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है। यही कारण है कि 8 मार्च को ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन किया जाता है।
प्रत्येक वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस एक खास थीम पर आयोजित किया जाता है। वर्ष 1996 से लगातार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस किसी निश्चित थीम के साथ ही मनाया जाता है। सबसे पहले वर्ष 1996 में इसकी थीम “अतीत का जश्न और भविष्य के लिए योजना” रखी गई थी। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस-2021 की थीम है -‘वीमेन इन लीडरशिप:एन इक्वल फ्यूचर इन ए कोविड-19 वर्ल्ड'(‘महिला नेतृत्व: कोविड-19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना’)।
संस्कृत में एक श्लोक है-‘यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:।अर्थात्,जहां नारी की पूजा होती है,वहां देवता निवास करते हैं। भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। अधिकतर धर्मों में नारी सशक्तिकरण का उदाहरण देखने को मिलता है जैसे हिन्दू धर्म में वेद नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण,गरिमामय,उच्च स्थान प्रदान करते हैं।वेदों में स्त्रियों की शिक्षा-दीक्षा, शील,गुण,कर्तव्य,अधिकार और सामाजिक भूमिका का सुन्दर वर्णन पाया जाता है।वेद उन्हें घर की सम्राज्ञी कहते हैं और देश की शासक,पृथ्वी की सम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते हैं।वेदों में स्त्री यज्ञीय है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय।वेदों में नारी को ज्ञान देने वाली,सुख–समृद्धि लाने वाली,विशेष तेज वाली,देवी, विदुषी,सरस्वती,इन्द्राणी,उषा- जो सबको जगाती है इत्यादि अनेक आदर सूचक नाम दिए गए हैं।वेदों में स्त्रियों पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है–उसे सदा विजयिनी कहा गया है और उन के हर काम में सहयोग और प्रोत्साहन की बात कही गई है। वैदिक काल में नारी अध्यन- अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र में भी जाती थी। जैसे कैकयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई थी। कन्या को अपना पति स्वयं चुनने का अधिकार देकर वेद पुरुष से एक कदम आगे ही रखते हैं।अनेक ऋषिकाएं वेद मंत्रों की द्रष्टा हैं–अपाला,घोषा,सरस्वती,सर्पराज्ञी,सूर्या,सावित्री, अदिति-दाक्षायनी,लोपामुद्रा,विश्ववारा,आत्रेयी आदि।वेदों में नारी के स्वरुप की झलक इन मंत्रों में देखें जा सकते हैं- यजुर्वेद 20:9 (स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है)। यजुर्वेद 17:45 (स्त्रियों की भी सेना हो। स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें)। यजुर्वेद 10:26 (शासकों की स्त्रियां अन्यों को राजनीति की शिक्षा दें।जैसे राजा,लोगों का न्याय करते हैं वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों)। अथर्ववेद 11:5:18 (ब्रह्मचर्य सूक्त के इस मंत्र में कन्याओं के लिए भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है। यह सूक्त लड़कों के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्त्व देता है) कन्याएं ब्रह्मचर्य के सेवन से पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें। अथर्ववेद 14:1:6 (माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धीमत्ता और विद्याबल का उपहार दें। वे उसे ज्ञान का दहेज़ दें)। जब कन्याएं बाहरी उपकरणों को छोड़ कर,भीतरी विद्या बल से चैतन्य स्वभाव और पदार्थों को दिव्य दृष्टि से देखने वाली और आकाश और भूमि से सुवर्ण आदि प्राप्त करने–कराने वाली हो तब सुयोग्य पति से विवाह करे।ऋग्वेद 10.85.7 (माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धिमत्ता और विद्याबल उपहार में दें। माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी कन्या को दहेज़ भी दें तो वह ज्ञान का दहेज़ हो)। ऋग्वेद 3.31.1 (पुत्रों की ही भांति पुत्री भी अपने पिता की संपत्ति में समान रूप से उत्तराधिकारी है)। देवी अहिल्याबाई होलकर,मदर टेरेसा,इला भट्ट,महादेवी वर्मा,राजकुमारी अमृत कौर,अरुणा आसफ अली,सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन-वचन व कर्म से सारे जग-संसार में अपना नाम रोशन किया था। कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी का बायां हाथ बनकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इंदिरा गांधी ने अपने दृढ़-संकल्प के बल पर भारत व विश्व राजनीति को प्रभावित किया था। उन्हें लौह-महिला यूं ही नहीं कहा जाता है। इंदिरा गांधी ने पिता,पति व एक पुत्र के निधन के बावजूद हौसला नहीं खोया। दृढ़ चट्टान की तरह वे अपने कर्मक्षेत्र में कार्यरत रहीं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन तो उन्हें ‘चतुर महिला’ तक कहते थे, क्योंकि इंदिराजी राजनीति के साथ वाक्-चातुर्य में भी माहिर थीं। कोरोना संकट का सबसे ज्यादा भार परिवार में महिलाओं पर आ पड़ा। कोरोना के भारी संकट में पूरे परिवार में यदि किसी पर सबसे ज्यादा संकट आया तो वह घर की महिला ही है जिसकी भूमिका अचानक बहुत बढ़ गई और घर में न केवल उसके काम बढ़े बल्कि उसके अधिकार क्षेत्र में दूसरे लोगों का अनधिकृत प्रवेश भी बढ़ गया। हर कोई उस पर हुक्म चलाया या फिर उससे काम करवाया। लॉकडाउन में बाहर सब कुछ बंद था तो सबको घर पर ही रहने की मजबूरी थी। लॉकडाउन ने महिलाओं के काम के बोझ को बढ़ा दिया था। बच्चे स्कूल में जा नहीं रहे उन्हें या तो घर पर पढ़ाओ या नई−नई चीजें खिलाते रहो या मनोरंजन करो नहीं तो वे उधम मचायेंगे। जो बुर्जग हैं उन्हें कोरोना का सबसे ज्यादा खतरा था,उनकी देखभाल अलग। बड़े आराम से घर में कोरोना से बचाव के लिए घर वालों ने तय कर दिया कि हाउस हैल्प और काम करने वाली बाई को मत आने दो। फिर खाना बनाने,बर्तन मांजने, झाडू चौका, कपड़े धोने का काम सब महिला पर ही आ गया। महिलायें पुरुषों की तुलना में किसी भी संकट में ज्यादा सतर्क और सक्रिय होती हैं। बेहतर प्रबंधक और बुरे हालात में भी बड़ी हिम्मत से परिवार और समाज को संभाले रहती हैं ये अलग बात है जब संकट नहीं रहता तब वे परिवार और समाज दोनों में ही फिर से उपेक्षित हो जाती हैं। कोरोना के इस संकट में उन्होंने कुछ अतिरिक्त जिम्मेवारियों का वहन किया|भारतीय संस्कृति में महिलाओं की अत्यंत गौरवशाली व महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत एकमात्र देश है जहां महिलाओं के नाम के साथ देवी शब्द का प्रयोग किया जाता है। यहां नारी को शक्ति स्वरूपा, भारतीय संस्कृति की संवाहक,जीवन मूल्यों की संरक्षक,त्याग,दया,क्षमा,प्रेम, वीरता और बलिदान के प्रतीक के रूप में स्थापित किया गया है। उसे गृहलक्ष्मी की मान्यता दी गई, परंतु कालांतर में इन धारणाओं में परिवर्तन परिलक्षित होने लगे और समाज में स्त्री की स्थिति कमजोर हो गई।वह अशिक्षा,लैंगिक भेदभाव, कुप्रथाओं और पुरुषवादी सोच के कारण घर की दहलीज तक सीमित होकर रह गई।अब स्थितियां बदल रही हैं। इक्कीसवीं सदी में भौतिकवादी परिवेश और बाजारवादी ताकतों के दबाव में नारी की छवि में तेजी से बदलाव हुआ। इक्कीसवीं सदी में जितनी बड़ी संख्या में महिलाएं शिक्षक,इंजीनियर,डॉक्टर और वैज्ञानिक बनकर उच्च पदों पर पहुंचीं और रोजगार के विविध क्षेत्रों में सक्रिय हुईं,वह अचंभित करने वाली है। महिलाओं ने आइटी,प्रशासन,शिक्षा और विज्ञान जैसे अनेक क्षेत्रों में अपनी भागीदारी बढ़ाकर पहचान बनाई है|महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को समाज में स्थापित करने से महिलाएं मजबूत बनेंगी।मैं कुछ ऐसी महिलाओं का जिक्र करना चाहता हूँ जिन्होंने वर्ष 2020 ई. के हर गुज़रते दिन के साथ दुनिया पर कोई न कोई असर छोड़ा|वो महिलाएं इस प्रकार हैं – क्रिस्टिना,’बाइट बैक’ नाम के अभियान के युवा बोर्ड की सह अध्यक्ष हैं।ये अभियान खान-पान के उद्योग में अन्याय के ख़िलाफ़ चलाया जा रहा था। क्रिस्टिना ने ख़ुद स्कूल में सरकार की ओर से मिलने वाले मुफ़्ते खाने का लाभ लिया। अब वो चाहती हैं कि ब्रिटेन में कोई भी बच्चा भूखा न रहे।
रीना अख्तर का जन्म स्थान बांगला देश है। कोविड-19 की महामारी के दौरान रीना अख्तर और उनकी टीम हर हफ़्ते चार सौ लोगों को खाना खिलाया करती थी। इसमें चावल,सब्ज़ियां,अंडे और मांस होता था। वो ढाका की उन सेक्स वर्कर्स को खाना खिलाती थीं,जिनके पास ग्राहक आने बंद हो गए थे। जिनके पास खाने का कोई और इंतज़ाम नहीं था|रीना अख्तर कहती हैं – मैं ये कोशिश कर रही हूं कि इस पेशे से जुड़ी औरतें भूखी न रहें,और उनके बच्चों को वेश्यावृत्ति का काम न करना पड़े।
सारा अल अमीरी संयुक्त अरब अमीरात की आधुनिक तकनीक विभाग की मंत्री हैं ।वो यू. ए. ई. की अंतरिक्ष एजेंसी की प्रमुख भी हैं। इससे पहले वो संयुक्त अरब अमीरात के मंगल मिशन की वैज्ञानिक प्रमुख और डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर रही थीं । संयुक्त अरब अमीरात का मंगल मिशन किसी अरब देश का दूसरे ग्रह के लिए पहला अभियान था। मंगल का चक्कर लगाने वाले ऑर्बिटर का नाम अमाल (अरबी भाषा में उम्मीद) रखा गया था। इस मिशन का मक़सद जलवायु और मौसम के अध्ययन के लिए आंकड़े जुटाना है। डॉ. अनास्तासिया वोलकोवा एक उद्यमी हैं जिनका जन्म स्थान यूक्रेन है,जो कृषि के क्षेत्र में नए तौर तरीकों से काम कर रही हैं। वे खाद्य सुरक्षा के लिए विज्ञान और तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं। 2016 में उन्होंने फ्लूरोसैट कंपनी की स्थापना की|यह कंपनी किसानों का उत्पादन बढ़ाने के लिए ड्रोन और सैटेलाइट के ज़रिए आंकड़े एकत्रित करती है। आंकड़ों की गणना और विश्लेषण और दूसरे तौर तरीकों से कंपनी किसानों की मदद करती है। पौधों की वायरस विशेषज्ञ के तौर पर सीरिया में जन्मी डॉक्टर सफा कुमारी उन महामारियों का समाधान खोजती हैं,जो फ़सलों को तबाह करती हैं। ऐसे बीजों की खोज करके जिनसे सीरिया में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके,सफा कुमारी ने उन बीजों को अलेप्पो से सुरक्षित निकालने के लिए अपनी ज़िंदगी तक दांव पर लगा दी थी। डॉक्टर सफा ने वायरस से लड़ने वाले पौधों की क़िस्मों की तलाश में कई बरस बिताए हैं। इनमें फाबा बीन नाम का पौधा भी है,जो फबा नेक्रोटिक यलो वायरस (ऍफ़ बी एन वाई वी) प्रतिरोधी है। महिला सशक्तिकरण के सरकारी दावों को झुठलाती,अमेरिकी समाचार पत्रिका न्यूजवीक और महिला अधिकारों पर केन्द्रित द डेली बीस्ट की एक नई रिपोर्ट ने यह प्रमाणित कर दिया है कि हमारी सरकारें महिलाओं की दशा सुधारने और उन्हें सशक्त करने का जो दम भरती हैं, वह किस हद तक झूठे और भ्रम पैदा करने वाले होते हैं। द बेस्ट एंड द वर्स्ट प्लेस फॉर वूमेन नाम की इस रिपोर्ट में शामिल 165 देशों में भारत को 141वां स्थान दिया गया है। हैरानी की बात तो यह यह है कि म्यांमार, बांग्लादेश,भूटान आदि जैसे अल्प-विकसित देशों को भारत की अपेक्षा महिलाओं के लिए सुरक्षित दर्शाया गया है।
अंत में हमे यही कहना ठीक रहेगा कि हम हर महिला का सम्मान करें। अवहेलना,भ्रूण हत्या और नारी की अहमियत न समझने के परिणाम स्वरूप महिलाओं की संख्या,पुरुषों के मुकाबले कम बची है। इंसान को यह नहीं भूलना चाहिए कि नारी द्वारा जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अस्तित्व बना पाया है और यहां तक पहुंचा है। उसे ठुकराना या अपमान करना सही नहीं है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी,दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है। अत: उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए। अतएव हम कह सकते हैं कि नारी समाज के विकास की धरोहर है।
लेखक : डॉ शंकर सुवन सिंह वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक असिस्टेंट प्रोफेसर,शुएट्स,नैनी,प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)