बड़ाजामदा हाई स्कूल के 10वीं कक्षा के छात्र इंद्रजीत सिंह (Indian inventor Indrajeet Singh) ने इंस्पायर अवार्ड (Inspire Award 2016) में अपने सोलर साइकिल का मॉडल प्रस्तुत कर राष्ट्रीय स्तर पर 9वां स्थान हासिल किया है। नई दिल्ली के सीएसआईआर कॉम्पलेक्स में आयोजित कार्यक्रम में इंद्रजीत सिंह को विज्ञान और तकनीकी केंद्रीय मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने सम्मानित किया।इतना ही नहीं, भारत के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने इंद्रजीत सिंह (Indrajeet Singh) को साही के भोजन पर आमंत्रित किया और साथ में भोजन किया।
आविष्कार की दुनिया में झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के बड़ाजामदा के छोटे से गांव का छोरा छा गया है। उसकी उपलब्धि का डंका इस कदर बजा कि राष्ट्रपति का बुलावा पहुंच गया। इंद्रजीत सिंह ने ऐसी साइकिल बनाई है, जो सौर ऊर्जा से चलती है। साइकिल इतने कमाल की है कि आप बिना पसीना बहाए ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं। इस साइकिल के किस्से राष्ट्रपति भवन तक पहुंचे तो राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इंद्रजीत सिंह को दिल्ली आने का न्योता भेज दिया।
यह प्रेरक कहानी झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम इलाके के एक ऐसे युवक की है, जिसने अभावों के बीच जीवन गुजारा लेकिन मजबूत इच्छाशक्ति की वजह से एक ऐसे साइकिल का निर्माण किया जो सौर ऊर्जा से चलती है (Solar cum Electric Bicycle)। भले ही शुरूआत में इस अविष्कार को पहचान नहीं मिली लेकिन अब उन्हें साइकिल के लिए आर्डर मिलने लगा है।
19 वर्षीय इंद्रजीत सिंह (Indrajeet Singh) ग्रेजुएशन के छात्र हैं लेकिन इसके साथ ही, उनकी एक और पहचान है और वह है एक आविष्कारक-उद्यमी (Young Indian Entrepreneur and Innovator) की। बचपन से ही मशीनों को समझने और बनाने के शौक़ीन रहे इंद्रजीत सिंह ने अब तक कई ऐसे आविष्कार किए हैं जो जनसाधारण के लिए मददगार हैं। पहले तो उन्होंने पहाड़ी क्षेत्रों में बच्चों की पैदल आने-जाने की समस्या को समझते हुए सोलर साइकिल बनाई और फिर गाँव में चिरौंजी के किसानों की मदद के लिए पोर्टेबल चिरोंजी डेकोर्टिकेटर मशीन भी बनाई है।
इंद्रजीत के पिता एक बस ड्राईवर हैं और घर में उनके दो भाई-बहन हैं। आर्थिक स्थिति इतनी भी ठीक नहीं है कि उनके माता-पिता उन्हें किसी बड़े स्कूल में पढ़ाते। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सरकारी स्कूलों से ही पूरी की और वहीं पर तरह-तरह के साइंस प्रोजेक्ट्स में भाग लेते रहे। स्कूल को यदि किसी जिला स्तरीय या राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेना होता तो इंद्रजीत को ही कुछ बनाने के लिए कहा जाता। कई बार उन्होंने अपने स्कूल में भेदभाव का समाना भी किया। उनके बनाए प्रोजेक्ट को किसी और बच्चों के नाम से आगे भेजा गया।
“एक-दो बार मेरे साथ ऐसा हुआ लेकिन मैंने हार नहीं मानी। क्योंकि मैं जानता था कि मुझमें और भी बहुत कुछ करने का हुनर है। इसलिए मैं घर पर अपनी एक छोटी सी वर्कशॉप बनाने में जुटा रहा। जब भी कोई पैसे मिलते, मैं अपने आइडियाज पर काम करने के लिए उनसे इंस्ट्रूमेंट्स ले आता,” उन्होंने बताया।
एक बार उन्हें पुरस्कार में सोलर लाइट मिली और इससे उन्हें सोलर के काम करने की तकनीक समझ में आई। सोलर लाइट को समझते-समझते, इन्द्रजीत के मन में ख्याल आया कि अगर इतना कुछ सोलर से चल सकता है तो क्या उनकी साइकिल भी सोलर से चल पाएगी? उन्होंने इस पर अपने स्तर पर काम करना शुरू किया। उन्होंने एक सेकंड हैंड मोटर खरीदी, सोलर लाइट के सोलर पैनल को निकाला और भी दूसरी चीजें उन्होंने जुटाई। स्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ वह सोलर साइकिल बनाने में भी जुट गए।
“पहले तो मैं ट्रायल कर रहा था लेकिन फिर मैंने देखा कि पहाड़ी रास्ते की वजह से स्कूल पहुँचने में बहुत बच्चों को दिक्कत होती है। जिनके पास साइकिल है उनके लिए भी ढलान से उतरना तो आसान रहता है लेकिन ढलान पर खुद को और साइकिल को चढ़ाना उतना ही मुश्किल। उनके बारे में सोचकर भी मैंने यह कोशिश की ताकि आसानी से ऐसे रास्तों से आया जा सके,” उन्होंने आगे कहा।
इसी बीच साल 2016 में उन्हें हनी बी नेटवर्क और नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन द्वारा आयोजित INSPIRE अवॉर्ड्स में भाग लेने का मौका भी मिला। पहले उन्होंने जिला स्तर पर प्रथम पुरस्कार हासिल किया और फिर उन्हें अगले लेवल के लिए रांची बुलाया गया। लेकिन उस वक़्त उनके साथ जाने वाला कोई नहीं था।
“मैं कभी भी अकेले अपने शहर से बाहर नहीं गया था और स्कूल से इस बारे में कोई मदद नहीं मिली। घरवालों ने भी कहा कि कोई ज़रूरत नहीं है जाने की। लेकिन मैं रात को अकेले घर से निकल गया और ट्रेन से रांची पहुंच गया। इसके बाद मुझे दिल्ली बुलाया गया, जहाँ डॉ. हर्षवर्धन ने मुझे सम्मानित किया और मुझे अनिल सर से मिलने का मौका मिला,” उन्होंने आगे कहा।
पुरानी साइकिल और सेकंड हैंड चीज़ें इस्तेमाल कर बनी उनकी सोलर साइकिल में उस समय लगभग तीन हज़ार रूपये की लागत आयी थी। उन्होंने साइकिल को इस तरह मॉडिफाइड किया कि यह सोलर और इलेक्ट्रिक दोनों तरीके से चल सके। सोलर पैनल के साथ यह साइकिल 30 किमी प्रतिघंटा के हिसाब से चलती है और बतौर इलेक्ट्रिक, एक चार्जिंग में यह साइकिल (Solar cum Electric Bicycle ) लगभग 60 किमी तक चल सकती है।
वह कहते हैं कि सोलर की वजह से कभी-कभी साइकिल का वजन बढ़ जाता है और इसलिए अब वह लोगों को फोल्डेबल सोलर पैनल की सुविधा दे रहे हैं ताकि जब लोगों को ज़रूरत हो तब ही उन्हें सोलर का इस्तेमाल करना पड़े!
इंस्पायर अवॉर्ड जीतने के बाद उन्हें जापान के Sakura Exchange Program in Science में भी जाने का मौका मिला। हालाँकि, इतने सम्मान मिलने के बाद भी उन्हें कहीं से कोई आर्थिक मदद नहीं मिल पाई। न ही उनके इनोवेशन को आगे बढ़ाने के लिए और न ही उनकी पढ़ाई के लिए।
हाई स्कूल पास करने के बाद वह जमशेदपुर पहुँचे और वहाँ से उन्होंने अपनी 11वीं और 12वीं की कक्षा पास की। अपनी पढ़ाई और अपने इनोवेशन पर काम करने के लिए उन्होंने अलग-अलग जगह पार्ट टाइम नौकरी भी की। वह बताते हैं कि जमशेदपुर में सोलर साइकिल ने उनकी बहुत मदद की है।
इंद्रजीत का दूसरा इनोवेशन, पोर्टेबल चिरौंजी डेकोर्टिकेटर मशीन (Low Cost Portable Chironji Decorticator) है। वह बताते हैं कि किसानों को चिरौंजी का फल हाथों से निकालना पड़ता है क्योंकि इसके लिए जो भी मशीन है, वह काफी महंगी है। कोई भी ऐसी मशीन है नहीं जो कम लागत वाली और छोटे किसानों के लिए हो। किसानों को इस प्रक्रिया में काफी वक़्त लगता है और न ही उन्हें अच्छे फल मिल पाते हैं। इसलिए उन्होंने यह मशीन बनाई ताकि किसानों की मदद हो सके।इस मशीन के लिए उन्हें साल 2018 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा इगनाइट अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है। उनकी इस मशीन के लिए भी उन्हें सम्मानित किया गया है
अपने इस दोनों इनोवेशन को प्रोक्ट्स के रूप में बाजार में उतारने के लिए इंद्रजीत ने एक सोशल एंटरप्राइज शुरू करने का फैसला किया है ट्राइबल एंड रूरल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया (TRIF-INDIA) झारखंड राज्य में संचालित एक भारतीय गैर-सरकारी संगठन है। इसके ज़रिए वह न सिर्फ अपने इनोवेशन दूसरों तक पहुँचाना चाहते हैं बल्कि ग्रामीण इलाकों में जो लोग अपनी समझ से दूसरों की मदद के लिए कुछ बनाना चाहते हैं उन्हें भी रोज़गार देना चाहते हैं।
प्रतिभावान छात्र है इंद्रजीत : बड़ाजामदा हाई स्कूल के शिक्षक आमोद कुमार मिश्र ने कहा कि इंद्रजीत सिंह काफी प्रतिभावान छात्र है। जो कठिन परिश्रम और सृजनात्मक सोच के बदौलत बड़ाजामदा हाई स्कूल को राष्ट्रीय मुकाम तक पहुंचाया है। वहीं, इंद्रजीत सिंह के माता-पिता और स्कूल के प्रधानाध्यापक इम्तियाज नाजिम ने उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
मशीनों से बचपन से ही लगाव था
इंद्रजीत सिंह बताते हैं कि उन्हें मशीनों से बचपन से ही प्यार था। एक बार तो उन्होंने बचपन में घर पर रेडियो को खोल दिया था यह देखने के लिए कि यह बजता कैसे हैं। अपनी मशीनों से प्यार के कारण स्कूल में जब भी कोई साइंस की प्रतियोगिता होती तो उसमें इंद्रजीत को ही भेजा जाता था। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि इंद्रजीत के द्वारा बनाए गए प्रोजेक्ट को किसी और छात्र के नाम से भेज दिया गया हो । इंद्रजीत इन सब बातों से कभी हताश नहीं हुए। उन्हें यकीन था कि कभी ना कभी उन्हें उनके काम के कारण पहचान मिलेगी और यह हुआ भी।