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सिर धड़ से अलग होने पर भी लड़ता रहा कोटिया भील, जानिए कोटा का इतिहास।

shivam by shivam
August 26, 2020
in अन्य
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सिर धड़ से अलग होने पर भी लड़ता रहा कोटिया भील, जानिए कोटा किले का इतिहास। History of kota Kotiya Bheel

सिर धड़ से अलग होने पर भी लड़ता रहा कोटिया भील, जानिए कोटा किले का इतिहास। History of kota Kotiya Bheel

कोटा का इतिहास : चंबल नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित को कोटा का किला हाड़ा राजपूतों की वीरता कोटिया भील के पराक्रम की अनेक गौरव गाथाओ, साहसिक घटनाओं और रोमांचक प्रसंगो का साक्षी रहा है।

kota fort कोटा का किला

कोटा के किले की सर्वोपरि विशेषता यह है की किले की प्राचीर पर्वत श्रृंखला के साथ इस तरह एकाकार हो गई है कि दूर से यह किला शत्रु सेना को नजर नहीं आता और इसके पास जाने पर ही अचानक प्रकट होता था। किला तीन ओर से लगभग 60 से 70 फीट ऊंची प्राचीर से रक्षित है और चौथी तरह अथाह जल राशि से परिपूर्ण वर्ष पर्यंत बहने वाली चंबल नदी इसे सुरक्षा प्रदान करती है।

राजा कोटिया भील की गौरव गाथा।

कोटा के किले की नीव बूंदी के हाडा राजवंश के पराक्रमी शासक राव देवा के पुत्र राजकुमार जैत सिंह ने कोटा के भील सरदार कोटिया भील (Kotiya Bheel) धोखे से विजय प्राप्त करके रखी थी। कोटिया भील इकेलगढ़ नामक प्राचीन किले का शासक था तथा वही निवास करता था उसी के नाम से कोटा का नाम पड़ा।

कोटिया भील (Kotiya Bheel ) अत्यंत पराक्रमी था उसे युद्ध में हरा पाना असंभव सा था तब जैत सिंह ने उसे अपने यहां दावत पर बुलाकर खूब शराब का सेवन करवाया। जब कोटिया भील पूरी तरह से शराब के नशे में धुत हो गए तब सालार गाजी और हाडा राजपूतों ने मिलकर उन पर हमला बोल दिया। कोटिया भील ने वीरता से उनका सामना किया और सालार गाजी को मार गिराया तब जैत सिंह ने धोखे से कोटिया भील की गर्दन धड़ से अलग कर दी गर्दन धड़ से अलग हो जाने के बाद भी कोटिया भील युद्ध करते रहे तब उनकी कमर काट दी गई इस तरह उनके शरीर के तीन हिस्से हो गए और उन्होंने अंतिम सांस ली ,इस तरह कोटिया भील की हत्या कर दी गई।

बूंदी राजवंश से ही कोटा राजवंश का निकास हुआ है। मुगल बादशाह शाहजहां के शासनकाल में बूंदी से अलग कोटा के स्वतंत्र राज्य की स्थापना हुई। शाहजहां ने बूंदी के प्रतापी शासक राव रतन सिंह हाडा के दूसरे पुत्र माधव सिंह को दक्षिण में बुरहानपुर के युद्ध में वीरता और पराक्रम दिखाते हुए विजय प्राप्त करने पर प्रसन्न होकर राव को खिताब और कोटा की स्वतंत्र जागीर प्रदान की।

वीर जालिम सिंह झाला

जब कोटा और जयपुर के बीच भटवाड़ा का युद्ध हुआ तब कोटा ने जयपुर को हरा दिया था। इस युद्ध में कोटा के दीवान जालिम सिंह झाला ने वीरता और रण कौशल से कोटा की विजय में निर्णायक भूमिका निभाई। जालिम सिंह झाला ने अपने विश्वासपात्र सहायक दलेल खान पठान की सहायता से कोटा दुर्ग में सामरिक दृष्टि से सुदृढ़ प्राचीरो का निर्माण करवाया। 1804 में ब्रिटिश फौज कर्नल मैसन के नेतृत्व में कोटा की ओर आई तथा होल्कर की सेना से हार कर अंग्रेज सेनापति ने शरण देने की मांग करते हुए कोटा के किले में जबरन घुसने का प्रयास किया इस विपत्ति का जालिम सिंह ने दृढ़ता से सामना किया और अंग्रेजी सेना को शरण देने से मना कर दिया। दुर्ग की सुरक्षा व्यवस्था को भेजने में अंग्रेज सेना असफल रही और विवश होकर दिल्ली की ओर चली गई।

कोटा के स्वतंत्र राज्य के संस्थापक माधव सिंह ने कोटा दुर्ग का निर्माण करवाया और अपने पराक्रम के बल पर नए कोटा को बूंदी की बराबरी पर लाकर खड़ा किया। इसके बाद बूंदी और कोटा के पारस्परिक संबंध बिगड़ गए।

6 प्रवेश द्वार

कोटा के किले की मोटी प्राचीर में 6 विशाल प्रवेश द्वार हैं जिनमें पाटन पोल, कैथूनीपोल ,सूरजपोल, हाथी पोल और किशोरपुरा दरवाजा प्रमुख है।

अन्य दर्शनीय स्थल (कोटा का इतिहास)

कोटा का राजप्रासाद बहुत भव्य और कलात्मक है विशेष रुप से बृज नाथ मंदिर, जैत सिंह महल, माधव सिंह महल, बड़ा महल ,कंवरपदा महल, केसर महल ,अर्जुन महल ,हवा महल, चंद्र महल, बादल महल जनाना महल, छत्तर महल ,भीम महल ,दीवान ए आम, दरबार हॉल जालिम सिंह झाला की हवेली प्रमुख और उल्लेखनीय हैं।

कोटा का इतिहास राज महलों को भित्ति चित्रों का खजाना कहां जा सकता है शिकार के चित्र कोटा चित्र शैली की अनूठी विशेषता है ।कोटा के दरबार हॉल में कांच का सुंदर काम हुआ है।कोटा में स्थापित महाराजा माधव सिंह म्यूजियम रियासत कालीन कला और संस्कृति का बहुमूल्य खजाना है।

देश की स्वतंत्रता के बाद जब चंबल नदी के प्रवाह को नियंत्रित कर कोटा बैराज बांध बनाया गया तब किले और नदी के बीच आवागमन के लिए सड़क मार्ग का निर्माण हुआ।

यह भी पढ़ें : जोधपुर दुर्ग, मेहरानगढ़ (Mehrangarh Fort Jodhpur)

Tags: Kotiya BheelMost Beautiful places in Indiaकोटा का इतिहासकोटिया भील
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