आज पगमार्क फाउंडेशन द्वारा आयोजित जन आक्रोश रैली का आयोजन मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के दरा रेंज कार्यालय तक किया गया। वन प्रेमियों ने अनोखे तरीके से रोष प्रकट किया, रेंज कार्यालय पर बैंड बजाकर प्रदर्शन किया। मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व शुरू से ही बाघों का प्राकृतिक आवास रहा है। यहां 70 के दशक में अच्छी संख्या में बाघ स्वच्छंद विचरण करते थे। फिर धीरे-धीरे बाघ खत्म होते गए और एक समय यह बाघ विहीन हो गया। इसके बाद कोटा वासियों व पर्यावरणप्रेमियों ने इसे पुन: आबाद करने के लिए सालों तक लम्बी लड़ाई लड़ी, तब जाकर 3 अप्रेल 2018 को यहां पहला बाघ छोड़ा गया। इसके बाद अन्य बाघ भी लाए गए, लेकिन संक्रमण व अन्य कारणों से बाघों की दुर्भाग्यपूर्ण मौत हो गई। फिलहाल यहां एकमात्र बाघिन एमटी-4 थी, जिसे पिछले दिनों ही मुकुन्दरा के सेल्जर क्षेत्र में शिफ्ट किया गया है।
पगमार्क फाउंडेशन के अध्यक्ष देवव्रत सिंह हाड़ा ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि की सेल्जर क्षेत्र में बाघिन को शिफ्ट करना बिल्कुल भी उचित नहीं है सेल्जर क्षेत्र में जहां लाइटनिंग (एमटी-4) को छोड़ा गया है, वहां 10 हजार से अधिक कैटल प्रेशर है। चरवाहे जंगलों में विचरण करते हैं, पशु चराते हैं। कभी भी कोई घटना हो सकती है, जिसकी जिम्मेदारी वन विभाग की होगी। सेल्जर क्षेत्र आबादी क्षेत्र है। जंगल की इस रेंज के आस-पास काफी गांव हैं, जिनमें बड़ी संख्या में ग्रामीण निवास करते हैं। रात-बेरात उनका आना-जाना लगा रहता है। ऐसे में मानव-वन्यजीव संघर्ष की स्थिति बन सकती है, जो लोगों, जानवरों, संसाधनों तथा आवास पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। बाघिन क्षेत्र में घूमेगी तो कभी भी हादसा संभव है। देवव्रत हाड़ा ने कहा कि मुकुंदरा को बसाने का श्रेय सिर्फ सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को जाता है कोटा के जनप्रतिनिधि इस मामले में श्रेय लेने व अपनी राजनीति चमकाने के प्रयास में वन्यजीवों व कोटा की जनता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। वह समय-समय पर इस मामले में राजनीति कर रहे हैं, जिसका शिकार जंगल व जंगली जानवरों को होना पड़ रहा है।
फाउंडेशन के अर्पित मेहरा ने बताया की सेल्जर क्षेत्र में बाघिन की सुरक्षा के भी पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। सुरक्षा के नाम पर बनी दीवार कई जगह से क्षतिग्रस्त है। ऐसे में बाघिन को भी शिकारियों से खतरा है। वाटर पॉइंट्स से लेकर वायरलेस नेटवर्क की कमी बाघों के संरक्षण की दिशा में अच्छे संकेत नहीं देता। सेल्जर का मुख्य हिस्सा सड़क से 6 किलोमीटर की दूरी पर है, यदि बाघिन डोबिया माइंस क्षेत्र से ऊपर चढ़कर निकले तो बोराबास आबादी क्षेत्र मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर है। एनक्लोजर से ढाई किलोमीटर पर चंबल व्यू प्वॅाइंट है। जहां बाघिन नदी पारकर अंबारानी के रास्ते महज किलोमीटर में डाबी क्षेत्र पहुंच सकती है। एनक्लोजर से महज ढाई किलोमीटर में बाघिन नीचे उतरे तो कोलीपुरा आबादी क्षेत्र आ जाता है।
दरा के पर्यावरण प्रेमी देवीशंकर गुर्जर ने बताया की मुकुंदरा टाइगर रिजर्व की दरा रेंज में सुरक्षा दीवार बनाई गई, जो 82 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र को संरक्षित करती है। इस क्षेत्र में करोड़ों रुपए लगाकर बाघों को बसाने की योजना थी, बाघिन को यहां से शिफ्ट करने से करोड़ों रुपए व प्रयासों पर पानी फिर गया। दरा रेंज में ग्रामीणों को बाघों के प्रति संवेदनशील बनाने व बाघों से टकराव टालने के लिए पूर्व में प्रशिक्षित किया गया था, जबकि सेल्जर रेंज में अब तक ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया। ग्रामीण बाघों के साथ कैसे तालमेल बैठाना है, इस बारे में जागरूक नहीं हैं। ऐसे में टकराव मानव व बाघ के लिए घातक हो सकता है।
मुकुंदरा सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य एचएस जैदी ने रैली में कहा कि बाघिन एमटी-4 को सेल्जर से निकालकर पुन: मुकुन्दरा में शिफ्ट किया जाए। साथ ही, बाघिन की जोड़ी बनाने के लिए जो बाघ भविष्य में शिफ्ट किए जाने हैं, उन्हें भी मुकुन्दरा की दरा रेंज में शिफ्ट किया जाए, तभी राजस्थान का यह बाघ संरक्षित क्षेत्र आबाद हो सकेगा और पर्यटन का बड़ा केन्द्र बनेगा।
रैली के पश्चात मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के डीएफओ बीजू जॉय को वनमंत्री राजस्थान सरकार के नाम ज्ञापन सौंपा
इस दौरान फाउंडेशन के प्रभात शर्मा, संयोजक निमिष गौतम, चंबल एडवेंचर के बनवारी यदुवंशी, पर्यावरण प्रेमी कुलदीप सिंह चंद्रावत, शिवम ठाकुर, अश्विनी जांगिड़, मुकेश गुर्जर, रिंकू, अर्जुन खटीक, रुद्र सिंह, कपिल प्रजापति, नरेश गुर्जर, शंकर गुर्जर, अखबार कुरेशी, मोंटू समेत मोरुकला, मोरूखुर्द, कलियाकुइ, दरा क्षेत्र के ग्रामीण उपस्थित रहे।