Media Hindustan : राजस्थान का गौरव,गढ़ो का सिरमौर,वीरता और शौर्य की क्रीडा स्थली तथा त्याग और बलिदान का पावन तीर्थ है चित्तौड़गढ़ दुर्ग ( Chittorgarh fort ) चित्तौड़गढ़ का किला।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग ( Chittorgarh fort ) गंभीरी और बेड़च नदियों के संगम स्थल के पास अरावली पर्वत माला के एक विशाल पर्वत शिखर पर बना हुआ है। पर्वत की ऊंचाई अट्ठारह सौ पचास फीट है। यह किला अजमेर से खंडवा जाने वाली रेल मार्ग पर चित्तौड़गढ़ जंक्शन से 3 से 4 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग अट्ठारह सौ पचास फीट है क्षेत्रफल की दृष्टि से इसकी लंबाई लगभग 8 किलोमीटर चौड़ाई 2 किलोमीटर है। दिल्ली से मालवा और गुजरात जाने वाले मार्ग पर स्थित होने के कारण प्राचीन और मध्यकाल में इस किले का विशेष सामरिक महत्व था। चित्तौड़गढ़ दुर्ग को 21 जून 2013 को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल का दर्जा मिला था।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के निर्माता के बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है, परंतु ऐसा माना जाता है इस दुर्ग का निर्माण मौर्य राजा चित्रांगद ने करवाया था। महाराणा कुंभा ने इसका विस्तार और विकास करवाया था।
इस दुर्ग को चित्रकूट दुर्ग भी कहते हैं। बापा रावल ने मौर्य शासक मान मोर्य से 734 ईसवी में यह दुर्ग जीता था। इस दुर्ग पर अधिकार करने के लिए शत्रुओं ने कई बार आक्रमण किए जिनसे इस दुर्ग के शासकों और रणबांकुरे ने अपनी जी जान लगाकर रक्षा की।
चित्तौड़ के ऐतिहासिक साके (जोहर)
* सन 1303 में अलाउद्दीन खिलजी और चित्तौड़ के राणा रतन सिंह के मध्य युद्ध हुआ। इस साके में रानी पद्मिनी ने जौहर किया तथा राणा रतन सिंह व सैकड़ों रणबांकुरे के साथ वीर गोरा और बादल वीरगति को प्राप्त हुए।दुर्ग में स्थित गौमुख कुंड के पास रानी पद्मिनी का जौहर स्थल है।खिलजी ने दुर्ग अपने पुत्र खिज्र खान को सौंपकर उसका नाम खिजराबाद रख दिया।कुछ समय बाद उसने यह दुर्ग मालदेव सोनगरा को सौंप दिया।रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन की पुत्री थी।यह राजस्थान का दूसरा साका माना जाता है, पहला साका रणथंबोर दुर्ग का है।
* सन 1534 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह तथा महाराणा विक्रमादित्य के मध्य युद्ध हुआ।जिसमें देवरिया प्रतापगढ़ के वीर रावत बाघ सिंह पाड़न पोल दरवाजे के बाहर लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।यहां उनकी स्मृति में चबूतरा बना हुआ है। हाड़ी रानी कर्मावती और अन्य वीरांगनाओं ने जौहर किया।उसी युद्ध के पूर्व रानी कर्मावती ने हुमायूं को राखी भेज कर सहायता की मांग की थी। बहादुर शाह की सेना का नेतृत्व रूमी खान के पास था।
* सन 1567 में मुगल बादशाह अकबर व राणा उदय सिंह के मध्य युद्ध हुआ जिसमें वीर जयमल, पत्ता व कल्ला राठौड़ वीरगति को प्राप्त हुए। पत्ता सिसोदिया की पत्नी फूल कंवर के नेतृत्व में यहां जोहर हुआ था।21 फरवरी 1568 को दुर्ग पर मुगल सेना का अधिकार हो गया अकबर ने दुर्ग की रक्षा का दायित्व आसिफ खान को सौंपा।भैरव पोल व हनुमान पोल के बीच वीरवर राठौड़ कल्ला और ठाकुर जयमल की छतरियां है। तथा रामपॉल के भीतर रावत पत्ता का चबूतरा है। महाराणा उदय सिंह ने मालवा के शासक बाज बहादुर को अपने यहां शरण देकर अकबर को चित्तौड़ पर आक्रमण करने का अवसर प्रदान कर दिया।
दुर्गा के दर्शनीय स्थल
चित्तौड़गढ़ दुर्ग ( Chittorgarh fort ) स्थापत्य की दृष्टि से भी निराला दुर्ग है। मजबूत और घुमावदार प्राचीर,सातअभेद्य प्रवेश द्वार,उन्नत और विशाल बुर्ज,किले पर पहुंचने तक टेढ़ा मेढ़ा और लंबा सरपीला मार्ग आदि विशेषताओं से एक अभेद्य दुर्ग है। महाराणा कुंभा ने रथ मार्ग तथा सात प्रवेश द्वार बनवाए थे। दुर्ग का पहला प्रवेश द्वार पाटन पोल है। इसके पास ही रावत बाघ सिंह का स्मारक है इसके बाद क्रमशः भैरव पोल, हनुमान पोल,गणेश पोल जोड़ला पोल, एवं लक्ष्मणपोल है। सातवां और अंतिम दरवाजा रामपॉल जोकि दुर्ग का मुख्य दरवाजा है।
यहां विजय स्तंभ,कुंभ श्याम मंदिर,मीरा बाई मंदिर,संत रैदास की छतरी,जैन कीर्ति स्तंभ,गोरा बादल महल,नौलखा बुर्ज, श्रंगार चँवरी, भीमलत कुंड, चित्रांग मोरी तालाब,नोगजा पीर की कब्र,आदि दर्शनीय स्थल है।
विजय स्तंभ तथा कीर्ति स्तंभ
* चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित विजय स्तंभ का निर्माण राणा कुंभा ने माडू के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय के उपलक्ष में करवाया था। इसकी 9 मंजिले नव विधियों का प्रतीक है। विजय स्तंभ लगभग 120 फीट ऊंचाई का है इसका निर्माण सन 1440 में प्रारंभ हुआ तथा सन 1448 ईस्वी में बनकर तैयार हुआ।इसमें पौराणिक हिंदू देवी देवताओं की अत्यंत सजीव व कलात्मक देव प्रतिमाएं उकेरी गई हैं जिनके कारण इस स्तंभ को पौराणिक हिंदू मूर्तिकला का अनुपम खजाना या भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोश कहा जाता है यह एक विष्णु स्तंभ है।
* किले की पूर्वी प्राचीर के निकट एक सात मंजिला जैन कीर्ति स्तंभ है। जो आदिनाथ का स्मारक बताया जाता है।अनुमान अतः इसका निर्माण बघेरवाल जैन जीजा द्वारा 10वीं या 11 वीं शताब्दी के आस पास करवाया गया था।
विख्यात रानी पद्मिनी का महल।
चित्तौड़ दुर्ग का सबसे बड़ा आकर्षण राणा रतन सिंह की अनंत सुंदर रानी पद्मिनी का महल है जो एक शांत और खूबसूरत जलाशय पर स्थित है।सरलता और सादगी से परिपूर्ण यह महल उस वीरांगना द्वारा अपने शील तथा सतीत्व की रक्षा हेतु आत्मोउत्सर्ग की रोमांचक दास्तान का मुक साक्षी है।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के विभिन्न मंदिर
चित्तौड़गढ़ के किले में देव मंदिरों की तो जैसे भरमार है। यहां विद्यमान प्राचीन और भव्य मंदिरों में महाराणा कुंभा द्वारा निर्मित विष्णु के वराह अवतार का कुंभ स्वामी या कुंभ श्याम मंदिर, सूरजपोल दरवाजे के पास नीलकंठ महादेव का मंदिर, महासती स्थान पर बना समिदेश्वर मंदिर,मीरा बाई का मंदिर, तुलजा भवानी का मंदिर कुकड़ेश्वर महादेव आदि प्रमुख और उल्लेखनीय है। यहां विद्यमान कालिका माता के मंदिर के विषय में इतिहासकारों की धारणा है कि एक प्राचीन सूर्य मंदिर था इसका निर्माण लगभग 10 वीं शताब्दी के आसपास हुआ था।