राजस्थान में बहुत से विशाल दुर्ग एवं सुदृढ़ किले हैं किंतु प्रसिद्ध वीर जाट योद्धा एवं महाराजा सूरजमल द्वारा भरतपुर के किले (लोहागढ़),Lohagarh Fort,Bharatpur का महत्व 6.4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल, इसकी मिट्टी की लगभग 20 मीटर ऊंची एवं 30 मीटर चौड़ी दीवार और उसके चारों और बने 20 मीटर गहरी और 70 मीटर चौड़ी पानी की खाई के कारण यहां तोपों के गोलों की गड़गड़ाहट शांत हो जाती थी, फिरंगियों के हथियार नाकाम हो जाते थे, आक्रमणकारियों को विवश होकर इस किले पर आक्रमण नहीं करने की बात याद आती थी। यह किला आगरा से 50 किलोमीटर, दिल्ली से 160 किलोमीटर दिल्ली-मुंबई रेल लाइन पर स्थित है।
महाराजा सूरजमल द्वारा संस्थापक भरतपुर दुर्ग (Lohagarh Fort Bharatpur )का निर्माण 1733 ईस्वी में सौघर(या सौगर ) के निकट प्रारंभ हुआ तथा 8 वर्ष में बनकर तैयार हुआ। पूर्व में यहां एक मिट्टी की गढ़ी ( चौबुर्जा ) थी जिसे 1708 ईस्वी में लुहिया गांव के जाट खेमकरण द्वारा बनवाया गया था।किले के चारों ओर एक गहरी खाई है जिसमें मोती झील से सुजानगंगा नहर द्वारा पानी लाया गया है। यह झील रूपारेल और बाणगंगा नदियों के संगम पर उनके जल को बांध के रूप में रोक कर बनाई गई है।
लोहागढ़ किले के प्रवेश का उत्तरी द्वार पर अष्ट धातु से निर्मित सुंदर कलात्मक एवं अत्यधिक मजबूत दरवाजा लगा हुआ है जिसे तत्कालीन महाराजा जवाहर सिंह 1765 में दिल्ली में मुगलों से जीतने के बाद लाल किले से लाए थे। कहा जाता है पूर्व में यह दरवाजा चित्तौड़ में लगा हुआ था। किले का दक्षिणी द्वार लोहिया दरवाजा कहलाता है।
भरतपुर दुर्ग की सुदृढ़ प्राचीर में आठ विशाल बुर्जे, 40 अर्धचंद्राकार बुर्जे स्थित है। किले की आठ विशाल गुर्जरों में सबसे प्रमुख जवाहर बुर्ज महाराजा जवाहर सिंह की दिल्ली विजय के स्मारक के रूप में है। अंग्रेजों पर विजय की प्रतीक फतेहपुर बुर्ज 1806 ईस्वी में बनी। किले की अन्य बुर्जो में सिनसिनी बुर्ज, भैंसावाली बुर्ज, गोकुला बुर्ज, कालिका बुर्ज, बागरवाली ब्रुर्ज और नवल सिंह बुर्ज उल्लेखनीय है।
असाधारण रचना
भरतपुर का किला कई दृष्टिकोण से एक असाधारण रचना थी। इसकी बाहरवाली खाई लगभग 250 फीट चौड़ी और 20 फीट गहरी थी। इस खाई की खुदाई से जो मलबा निकला वह उस 25 फीट ऊंची और 30 फीट मोटी दीवार को बनाने में लगा जिसने शहर को पूरी तरह घेरा हुआ था। इसमें 10 बड़े-बड़े बड़े दरवाजे थे। उनके नाम है मथुरा पोल, वीरनारायण पोल, अटलबंद पोल, नीमपोल, अनाहपोल, कुम्हेरपोल, चांदपोल, गोवर्धनपोल, जघीनापोल और सूरजपोल। इनमें से किसी भी दरवाजे से घुसने पर रास्ता एक पक्की सड़क पर जा पहुंचता था जिसके परे भीतरी खाई थी, जो 175 फीट चौड़ी और 40 फीट गहरी थी। दोनों और दो पुल थे जिन पर होकर किले के मुख्य द्वारों तक पहुंचना होता था। मुख्य किले की दीवारें 100 फीट ऊंची थी और उनकी चौड़ाई 30 फीट थी। इनका मोहरा (सामने वाला भाग) तो पत्थर, ईट और चूने का बना था, लेकिन बाकी हिस्सा केवल मिट्टी का था जिस पर तोपखाने की गोलाबारी का कोई असर नहीं होता था।
प्रमुख आक्रमण
यूं तो भरतपुर दुर्ग पर विभिन्न आक्रांन्ताओं के छोटे बड़े अनेक हमले हुए पर सबसे महत्वपूर्ण आक्रमण अंग्रेजों ने 1805 ईस्वी में किया । भरतपुर के शासक रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के शत्रु जसवंत राव होलकर को अपने यहां शरण दी जिससे अंग्रेजों का कोपभाजन बनना पड़ा। अंग्रेज सेनापति लोड लेक ने रणजीत सिंह को सबक सिखाने के लिए एक विशाल सेना के साथ भरतपुर दुर्ग को घेर लिया। उसकी सेना में लगभग 1000 यूरोपियन घुड़सवार सैनिक तथा बड़ा तोपखाना सम्मिलित था।
7 जनवरी 1805 से लेकर अप्रैल माह तक 5 बार भरतपुर दुर्ग पर जोरदार हमले किए गए ब्रिटिश तोपों ने गोले बरसाए वे या तो मिट्टी की बाह्य प्राचीर में धँस गए या किले के ऊपर से निकल गए। अंग्रेजी सेना के लाख कोशिश के बावजूद भी किले का पतन नहीं हो सका। उसी दिन से अब तक फाग के समय लोग गीत गाते हैं “गौर हट जारे, राज भरतपुर को”।
अंग्रेजों पर इसी विजय के उपलक्ष्य में 1806 में दुर्ग की फतेह बुर्ज का निर्माण करवाया गया था।
महल के अन्य दर्शनीय स्थल
इस किले में महलखास, कोठी खास, किशोरी महल, दरबार खास, सिलहा खाना, बिहारी जी का मंदिर तथा मोहन जी का मंदिर देखने के केंद्र है।
कचहरी कलां
लोहागढ़ दुर्ग भरतपुर में कचहरी कलां (विशाल हॉल) का उपयोग ‘दीवाने आम’ के रूप में किया जाता था। 18 मार्च सन 1948 को मत्स्य संघ का उदघाटन इसी दरबार हॉल में लोह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा किया गया था, जिसमें तत्कालीन 4 रियासतों भरतपुर धौलपुर करौली और अलवर का एकीकरण करके मत्स्य प्रदेश का गठन किया गया था।
भरतपुर को राजस्थान का ‘सिंह द्वार’ कहा जाता है । तथा भरतपुर दुर्ग को ‘पूर्वी सीमा का प्रहरी’ भी कहा जाता है। भरतपुर किले के बारे में यह उक्ति लोक में प्रसिद्ध है
“दुर्ग भरतपुर अलग जिमी, हिमगिरी की चट्टान।
सूरजमल के तेज को, अब लोग करत बखान”।।