सवाई माधोपुर जंक्शन से मात्र 13 किलोमीटर दूर दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग पर रणथंभौर वन्यजीव अभयारण्य अरावली पर्वत श्रंखला से घिरा रणथंभौर का किला (Ranthambore Fort) राजस्थान के प्रमुख किले में से एक है.
यह एक विकट दुर्ग है जो 994 ईस्वी में रणथम्मन देव द्वारा बनाया गया था। रणथंभौर दुर्ग में गिरी दुर्ग व वन दुर्ग दोनों की विशेषताएं विद्यमान है। इसकी स्थिति कुछ ऐसी है कि यह दूर से दिखाई नहीं देता है जबकि इसके ऊपर से शत्रु सेना आसानी से देखी जा सकती हैं। रणथंभौर दुर्ग से प्रभावित होकर अबुल फजल ने लिखा है कि “अन्य सब दुर्ग नंगे हैं जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद हैं”।
रणथंभौर दुर्ग की स्थिति कुछ ऐसी है कि मालवों का प्रवेश द्वार, दिल्ली के बादशाहों के आंखों की किरकिरी, मारवाड़ एवं मेवाड़ पर पूरी निगाह रखने का एक मात्र स्थान, अरावली विंध्यांचल पर्वत श्रेणियों का मिलान स्थल से यह किला प्राकृतिक सुरक्षा घने जंगलों के कारण अदृश्य एवं चारों और गहरी प्राकृतिक खाई से सुरक्षित अविजयी है।
यह दुर्ग चारों ओर से अरावली श्रेणियों से घिरा हुआ है जो इसे सुरक्षा कवच प्रदान करती हैं। इस दुर्ग का मार्ग घुमावदार ढाल युक्त संकीर्ण एवं नदी नालों घाटियों को पार करता हुआ इस तक पहुंचता है।
इस दुर्ग की विशेषता यह है कि जब तक पर्यटक, दर्शक, राहगीर, दुश्मन इस किले के नीचे तक प्रथम दरवाजे के सामने तक नहीं पहुंच जाता तब तक यह किला अदृश्य रहता है। भौगोलिक दृष्टि से यह किला खड़ी ढाल की पहाड़ी पर बना हुआ है इसीलिए यह अभेद्य एवं दुर्गम है।
इस किले के अंदर जाने के लिए एक ही रास्ता नजर आता है किंतु इसमें प्रवेश के लिए 84 घाटियांँ एवं गुप्त प्रवेश द्वार हैं जो दुश्मन की आंखों से सदैव ओझल रहते हैं।
दुर्ग में प्रवेश कैसे करें
किले से लगभग 7 किलोमीटर पहले मिश्र दरा दरवाजा आता है जहां से घना जंगल प्रारंभ हो जाता है यहां से यह रास्ता छोटे वाहनों के लिए ही सुगम है। आगे चलने पर घाटियां पहाड़ियों नदी नालों, घने जंगलों में वन्य जीवन और वन क्षेत्र की शीतल, मंद, सुगंधित हवा के झोंकों को पार करते हुए मोर दरवाजा और नौलखा दरवाजा आता है यही किले का प्रमुख प्रवेश द्वार है जहां से सीधी चढ़ाई शुरू हो जाती हैं और प्राकृतिक किले पर निर्मित मानव किला देखा जा सकता हैं।
दर्शनीय स्थल
रणथंभौर दुर्ग में प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर, पीर सदरूद्दीन की दरगाह, सुपारी महल, जौरां-भौरां, जोगी महल, बादल महल, हम्मीर महल, जौहर महल, रनिहाड़ तालाब आदि देखने लायक स्थल है। हम्मीर की कचहरी, पद्मला तालाब, आदि भी यहां स्थित है।
दुर्ग का प्रमुख दरवाजा नौलखा दरवाजा है। इसके अलावा यहां हाथीपोल, गणेश पोल, सूरजपोल और त्रिपोलिया दरवाजा स्थित है। इस किले की दीवारों से जुड़ी बड़ी-बड़ी बुर्जे, उन पर बने भैरव यंत्र, ठिकुलियाँ, मर्कटी यंत्र आदि देखने योग्य है।
अजमेर शासक पृथ्वीराज तृतीय के तराइन के द्वितीय युद्ध में हार जाने के बाद उनके पुत्र गोविंद राज ने यहां अपना शासन स्थापित किया था।
राजा हम्मीर देव
हम्मीर देव चौहान यहां के सर्वाधिक प्रतापी और प्रसिद्ध शासक थे। राजा हम्मीर देव ने दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोही सेनापति मोहम्मद शाह (महमाँ शाह) को शरण प्रदान की जिससे क्रोधित होकर अलाउद्दीन खिलजी ने 1300 ई. मैं रणथंभौर पर आक्रमण कर दिया। कई दिनों तक भी सफलता ना मिलने पर अलाउद्दीन ने छल कपट से राजा हम्मीर के दो विश्वस्त मंत्रियों को अपनी और मिला लिया, जिन्होंने दुर्ग के गुप्त दरवाजे का भेद अलाउद्दीन को बता दिया। अलाउद्दीन के सैनिक गुप्त दरवाजे से अंदर पहुंच गए। जिस कारण राजा हम्मीर को वीरगति प्राप्त हुई और वीर राजपूतों ने अपने प्राणों की आहुति देते हुए वीरगति प्राप्त की और यहां की रानियों ने हजारों की संख्या में दासियों के साथ ‘जौहर की ज्वाला’ में जलकर अपनी पवित्रता एवं सतीत्व की रक्षा की। 13 जुलाई, 1301 ई. को रणथंभौर पर अलाउद्दीन का अधिकार हो गया इस युद्ध के समय अलाउद्दीन के साथ प्रसिद्ध इतिहासकार अमीर खुसरो था। दुर्ग का यह साका (जौहर) राजस्थान का प्रथम साका माना जाता है।
1569ई. में मुगल बादशाह अकबर की सेना ने दुर्ग पर आक्रमण किया लेकिन अकबर को पूरी सफलता नहीं मिली। तब आमेंर के शासक भगवंत दास के प्रयासों से रणथंभौर दुर्ग के अधिपति बूंदी के राव सुरजन हाडा़ ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली और दुर्ग अकबर को सौंप दिया। अकबर ने रणथंभौर को अजमेर सूबे का एक जिला बना दिया और यहां एक सिक्के ढालने की टकसाल स्थापित की।
मुगल काल में रणथंभौर को शाही कारागार के रूप में भी उपयोग किया जाता था। यह किला अपने गौरवशाली इतिहास, अभेद्य प्राचीरों,पहाड़ियों, वनखण्डों, कल-कल बहती नदियों, धार्मिक स्थलों और वन्य प्राणियों की उपस्थिति के कारण पर्यटकों के लिए आकर्षण का विषय है और उनका मन मोह लेता है।