अभी हाल ही में 9 नवम्बर को आये राम-मंदिर फैसले पर कई बुद्धिजीवियों ने अपने अपने विचार रखे, जिनमे से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् गुजरात के प्रदेश संगठन मंत्री अशवनी शर्मा ने अपने विचार विशेष कुछ इस प्रकार व्यक्त किये.
“
जो कुछ श्रीराम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे । श्री रामचरित मानस में गोस्वामी श्री तुलसीदास जी की लिखी इस चोपाई का मतलब यू तो समय समय पर समझ मे आता है पर आज श्री रामजन्मभूमि पर बड़ी अदालत का निर्णय देखकर पूरी तरह से समझ मे आ गया ।9 नवम्बर 2019 भारत के इतिहास का एक ऐतिहासिक दिन बन गया दशकों या कहे शताब्दियों से चले आरहे श्रीराम जन्मभूमि प्रकरण पर देश की मुख्य अदालत ने अपना निर्णय सुना दिया तीस वर्ष पूर्व इसी दिन 9 नवम्बर 1989 को बहुचर्चित श्रीराम मंदिर आंदोलन की नींव भी पड़ी फैसले का यह दिन अदालत ने क्यों चुना यह तो पता नही पर शनिवार का यह दिन श्रद्धा पर सविधान की मुहर का दिन बन गया । तिरपाल में बैठे न्याय की आस लगाए श्री रामलला विराजमान को आखिर उनकी जन्मभूमि पर एकाधिकार प्राप्त हुआ ।
नियमित सुनवाई के बाद पूरा देश निर्णय की प्रतीक्षा में था 5 से 17 नवम्बर तक कब निर्णय आये राम जाने और निर्णय क्या आएगा वह भी राम ही जाने बस सालों के इस विवाद पर देश निर्णय चाहता था! अंततः 134 वर्ष में कई पीढ़ियों तक चली यह प्रतीक्षा 9 नवम्बर को समाप्त हुई । 8 नवम्बर, 2019 को रात करीबन 9:30 पर जब सुप्रीम कोर्ट पर अयोध्या फैसले पर अगले दिन फैसला सुनाए जाने की बात आई तो देश ठीक उसी तरह उत्सुक था जैसे ठीक 3 साल पहले इसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अचानक नोटबन्दी की घोषणा के बाद था। सभी TV पर आंखें गढ़ाए बैठ गए थे। विवादित कहे जाने वाले स्थान पर श्री राम का जन्मस्थान है यह तो वर्ष 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय में भी माना गया परन्तु श्रीराम लला को अपनी भूमि पर एकाधिकार न मिला भूमि का स्वामित्व विभाजित कर दिया गया , मुख्य अदालत द्वारा दिया गया निर्णय आस्था के साथ साथ तथ्यों पर भी आधारित है ।
अपने निर्णय में मुख्य अदालत की सवैधानिक पीठ ने हिंदुत्व को जीवन जीने की पध्दति मानकर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की पुस्तक “द हिन्दू व्यूह ऑफ लाइफ” तथा मोनियर विलयम्स की पुस्तक “रिलिजियस थॉट् एन्ड लाइफ इन इंडिया ” मे लिखे उनके हिन्दू जीवन शैली पर विचारों का उल्लेख किया है । श्रीअयोध्या के महत्व को बताते हुए श्री वृहद धर्मोत्तरापुराण सात पवित्र नगरों का उल्लेख बताते श्लोक
” अयोध्या मथुरा काशी कांची अवंतिका
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्ष दायिका”
को निर्णय में लिखा गया है । श्रीराम जन्म के लक्षणों का उल्लेख करते हुए अदालत ने निर्णय में
प्रोद्यमाने जगन्नाथम् सर्वलोकनमस्कृतम्।
कोसल्याजनयद रामं दिव्यलक्षणंसंयुतम्।।
बाल्मीकि रामायण के बालकांड में अध्याय 18 के श्लोक 10 का उल्लेख किया गया है जिसका अर्थ है “जिन परमेश्वर, जगत के स्वामी, जिन्हें सभी पूजते हैं, नमस्कार करते हैं, उन परमात्मा विष्णु को कौसल्या ने राम के रुप में जन्म दिया, जो सभी दिव्य लक्षणों से युक्त थे”
निर्णय में स्कन्दपुराण के प्रसंगों में श्रीराम जन्मस्थान बताया गया है उस स्थान के ईशान (उत्तर-पूर्व कोण) में राम का जन्म हुआ। इसे ही रामजन्म स्थान कहा गया है, जिस का दर्शन मोक्षादि पाने का साधन है। विघ्नेश्वर से पूर्व, वासिष्ठ से उत्तर में और लोमशात के पश्चिम भाग में मौजूद इस स्थान को राम की जन्म भूमि कहा गया है। रामजन्म भूमि के आसपास क्या है, राम का जन्म किस जगह हुआ है। इसका उल्लेख स्कंद पुराण के अयोध्या महात्म्य के वैष्णवकांड में लिखा गया है। इसके 18वें और 19वें श्लोक में उन स्थानों का जिक्र है, जिनके आसपास जन्मभूमि है। ये स्थान विघ्नेश्वर पोंडरिक, वशिष्ठ कुंड और लोमश आश्रम हैं। श्लोक में इन तीनों स्थानों से जन्म भूमि की स्थिति बताई गई है। जिसे क्रॉस एग्जामिन भी किया गया। फैसले में उन श्लोकों का उल्लेख है। साथ ही श्रीगुरुनानक देव जी की विक्रमी सम्वत 1564 (ई.स. 1507) में अयोध्या यात्रा का उल्लेख किया गया है उस समय भूमि पर श्रीराम मंदिर था क्योंकि उक्त समय तक बाबर का आक्रमण नही हुआ था।
करीब 500 वर्ष पहले अयोध्या में राम मंदिर गिराकर, मुगल आक्रमणकारी बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने वहां मस्जिद का निर्माण कराया था। वर्ष 1528 के आसपास बनी इस मस्जिद को बाबरी मस्जिद कहा गया। यहीं से राम जन्मभूमि को लेकर विवाद की शुरूआत हुई। इसके बाद वर्ष 1986 में फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट ने हिन्दुओं के अनुरोध पर विवादित स्थल के दरवाजे प्रार्थना के लिए खुलवा दिए। मुसलमानों ने इसका विरोध शुरू करते हुए, बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति बना ली। यहीं से हिंदू भी राम मंदिर निर्माण के लिए एकजुट होने शुरू हो गए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जन के मन के भाव को पहचान कर आंदोलन को नेतृत्व दिया जानकारी के अनुसार संघ के वरिष्ठ प्रचारक मोरोपन्त पिंगले इस विषय की गम्भीरता को समझकर चर्चा शुरू की धीरे धीरे यह मुद्दा सत्ता बदलने वाला मुद्दा भी बना । राम मंदिर की मांग में सबसे अहम पड़ाव आया साल 1989 का, जब विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की अगुवाई में हजारों हिंदू कार्यकर्ताओं ने अयोध्या में कथित विवादित स्थल के पास राम मंदिर का शिलान्यास कर दिया। इसके बाद से यह देश का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया था। अयोध्या मामले में 09 नवंबर 1989 की तारीख बेहद महत्वपूर्ण है। ये वही दिन था जब विहिप ने हजारों हिंदू समर्थकों संग अयोध्या में राम जन्म भूमिक का शिलान्यास किया था। हजारों राजनैतिक हस्तियों, बड़े-बड़े साधु-संतों के बीच उस वक्त 35 साल के रहे एक वंचित वर्ग से आने वाले युवक कामेश्वर चौपाल के हाथों राम मंदिर के नींव की पहली ईंट रखवायी गई । सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी होने से सबसे ज्यादा खुश अगर कोई है तो वो कामेश्वर (अब 65 वर्ष) ही हैं, जिन्होंने नींव की पहली ईंट रखी थी। कामेश्वर कहते हैं कि वह नींव की पहली ईंट रखने वाला पल वह कभी नहीं भूल सकते। वो पल उन्हें गर्व का एहसास कराता है। इसलिए उन्हें बेसब्री से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार था।
राम मंदिर शिलान्यास से पहले पूरे देश में विहिप ने इसके लिए अभियान चला रखा था। गाँव गाँव मे शिला पूजन से श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए हिंदू एकजुट होने लगे थे। शिलान्यास के लिए पूरे देश में यात्राएं आयोजित की गईं। श्रीराम मंदिर शिलान्यास के लिए ही आठ अप्रैल 1984 को दिल्ली के विज्ञान भवन में एक विशाल धर्म संसद का भी आयोजन किया गया था। श्रीराम मंदिर की नींव रखी गई,एक तरफ अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन चरम पर था, उधर विहिप के आव्हान पर देश भर से लाखों श्रद्धालु, कर सेवक ईंट लेकर अयोध्या पहुंचने लगे थे।
6 दिसम्बर, 1992 का दिन देश के इतिहास में दर्ज है जब जनभावनाओं ने आक्रमणकारी बाबर के अत्याचारों की निशानी को ढहाया। इसका अंदाजा शायद बहुतों को नहीं रहा होगा। लेकिन कुछ बड़ा होने जा रहा है, ऐसा वहां के माहौल को देखकर समझा जा सकता था। दूसरी ओर विहिप के साथ साथ जनसंघ से जनता पार्टी में बदलकर अपना अस्तित्व संकट में डाल चुकी आज की भाजपा के लिए भी अरुणोदय हुआ दो सीटों वाली भाजपा के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा ने आन्दोलन को घर घर तक पहुचाया । 1984 में पार्टी सिमट कर दो सीटों पर आ गई। लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के अध्यक्ष थे और अटल बिहारी वाजपेयी लोकसभा में बीजेपी संसदीय दल के नेता तब बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा का निर्णय हुआ. 25 सितंबर से शुरू रथयात्रा 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचनी थी. रथयात्रा से मिले अपने अनुभव को आडवाणी अपनी आत्मकथा ‘माई कंट्री, माइ लाइफ़’ में लिखते हैं कि ‘विवेकानन्द को याद करते हुए मैंने यह महसूस किया कि अगर धार्मिकता को सही दिशा में ले जाया जाए तो राष्ट्रीय पुनर्निमाण में अद्भुत ऊर्जा का निष्पादन हो सकता है।‘ आडवाणी की इस मुहिम का नतीजा यह निकला कि वह सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा पर निकले, हालाँकि वह अयोध्या नहीं पहुँच पाए। बिहार के समस्तीपुर में ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया, प्रदेश में उस समय लालू यादव के नेतृत्व वाली सरकार थी । लेकिन तब तक देश की राजनीति में बहुत बड़ा बदलाव आ चुका था।
रथयात्रा से दूसरी ओर 6 दिसम्बर को अयोध्या में जुटे कार सेवकों के साथ लोगों की बड़ी संख्या विवादित स्थल के अंदर घुस गई। देखते ही देखते ढांचे के गुंबदों पर उनका कब्जा हो गया। हाथों में बल्लम, कुदाल, छैनी-हथौड़ा लिए उन पर वार पर वार करने लगे। जिसके हाथ में जो था, वही उस ढांचे को ध्वस्त करने का औजार बन गया। और देखते ही देखते वर्तमान, इतिहास हो गया। आडवाणी,साध्वी ऋतुम्भरा, मुरली मनोहर जोशी ,अशोक सिंघल सहित संत व नेता वहां उपस्थित थे ।
इस दिन सुबह लालकृष्ण आडवाणी कुछ लोगों के साथ विनय कटियार के घर गए थे। इसके बाद वे विवादित स्थल की ओर रवाना हुए। आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और विनय कटियार के साथ उस जगह पहुंचे, जहां प्रतीकात्मक कार सेवा होनी थी। वहां उन्होंने तैयारियों का जायजा लिया। इसके बाद आडवाणी और जोशी ‘राम कथा कुंज’ की ओर चल दिए। यह उस जगह से करीब दो सौ मीटर दूर था। यहां वरिष्ठ नेताओं के लिए मंच तैयार किया गया था। सुबह 11 बजकर 45 मिनट पर फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक ने ‘बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि परिसर’ का दौरा किया। शायद वे भी स्थिति की गंभीरता को भांप नहीं पाए। उन्हें यह पूरा आयोजन एक सामान्य कार सेवा का कार्यक्रम ही लगा। ढांचा गिराए जाने के बाद बने रामलला के अस्थायी मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए सुरक्षाबलों की लंबी कतारें लगी हुई थीं। अपने उच्च अधिकारियों की चेतावनी का भी जवानों पर कोई असर नहीं हो रहा था। यही नहीं, उस अस्थायी मंदिर के आसपास तैनात जवानों ने अपने जूते उतारे हुए थे। जवानों की श्रद्धा से भरी आंखें और नंगे पांव वहां के हालात बयां कर रहे थे।
इस घटना के बाद केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार को बर्खास्त कर दिया। खबरें तो ऐसी भी थीं कि कल्याण सिंह बर्खास्तगी की सिफारिश से करीब तीन घंटे पहले ही इस्तीफा दे चुके थे। .और इस तरह 6 दिसंबर को इस देश ने इतिहास को ‘इतिहास’ होते देखा। लोगों की भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी। दोपहर को अचानक एक कार सेवक किसी तरह गुंबद पर पहुंचने में कामयाब हो गया। घटनाक्रम में बीकानेर मूल के दो कोठारी युवाओ का बलिदान भी हुआ
इस सम्पूर्ण घटनाक्रम के बाद कई बार ऐसा वक्त आया जब ये विषय निर्णायक मोड़ लेता नज़र आया लेकिन कहते हैं ना “होए वहीं जो राम रची राखा..”।
ऐसे ही 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना निर्णय ढिया जिसमे अयोध्या के कथित विवादित स्थल को राम जन्मभूमि बताया पर हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया गया था. कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माही अखाड़ा और रामलला के बीच जमीन बराबर बांटने का आदेश दिया था यह फैसला किसी भी पक्ष को स्वीकार न रहा लिहाज बड़ी अदालत की चौखट पर यह प्रकरण पहुँचा । पर शायद ईश्वर ने 9 नवम्बर, 2019 का दिन सुनिश्चित किया था इस सम्पूर्ण विवाद के सुखद परिणाम का
बड़ी अदालत में अपील के बाद दस्तावेजों के भाषाओ में अनुवाद को लेकर सुनवाई का इंतजार रहा । आम चुनावो सत्तारूढ़ भाजपा के पुनः सत्ता में वापसी के बाद 6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई शुरू हुई जो 16 अक्टूबर को खत्म हुई. सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में न्यायमूर्ति बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की संवैधानिक पीठ ने 40 दिन में सभी पक्षो ओर गवाहों को सुना और फिर फैसला सुरक्षित रख लिया । सुनवाइयों के दौरान हुई बहस से देश की श्री राम पर आस्था और मजबूत हुई एक ओर श्री रामलला विराजमान का पक्ष रखने 93 वर्ष के एडवोकेट परासरन प्रतिदिन पांच-पांच घण्टे सुनवाई में खड़े रहे वही 92 वर्ष पूरे करने जा रहे भाजपा के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी अपने जीवन मे इस ऐतिहासिक निर्णय का इंतजार कर रहे थे ।
9 नवम्बर 2019 को 134 साल पुराने अयोध्या मंदिर के कथित विवाद पर बड़ी अदालत ने अपना फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। इसके तहत अयोध्या की 2.77 एकड़ की पूरी विवादित राम मंदिर निर्माण के लिए श्रीरामलला को दी। बड़ी अदालत ने केंद्र सरकार को कहा कि मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बनाकर इसकी योजना तैयार की जाए। मुख न्यायाधीश ने मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन दिए जाने का फैसला सुनाया, जो कि विवादित जमीन की करीब दोगुना है। ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है और हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित हैं साथ ही मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा- राम जन्मभूमि स्थान न्यायिक व्यक्ति नहीं है, जबकि भगवान राम न्यायिक व्यक्ति हो सकते हैं इससे मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा की हिन्दू मान्यता को न्यायिक पुष्टि मिली है। साथ अदालत ने कहा- उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित जमीन पर अपना दावा साबित करने में विफल रहा। मुस्लिमों ने ऐसा कोई साक्ष्य पेश नहीं किया, जो यह दर्शाता हो कि वे 1857 से पहले मस्जिद पर पूरा अधिकार रखते थे।निर्णय में संवेधानिक पीठ ने स्पष्ट तौर पर कहा कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी। मस्जिद के नीचे जो ढांचा था, वह इस्लामिक ढांचा नहीं था।” भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के तथ्यों को अदालत ने प्रमुख सबूतो की मान्यता दी । “अदालत को धर्म और श्रद्धालुओं की आस्था को स्वीकार करना चाहिए। चीनी यात्रियों द्वारा लिखी किताबें और प्राचीन ग्रंथ दर्शाते हैं कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि रही है। ऐतिहासिक मिलते हैं कि हिंदुओं की आस्था में अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि रही है।” जिन्हें तथ्यों की मान्यता दी गयी है
एक ओर पीढ़ियों की प्रतीक्षा के बाद अदालत ने उम्मीद के अनुसार ही निर्णय दिया तो दूसरी ओर देश ने भी आपसी सोहदरता बनाये रखते हुए फैसले को सिर माथे रखा । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूज्य सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी ने कहा कि “हम सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हैं। यह मामला दशकों से चल रहा था और यह सही निष्कर्ष पर पहुंच गया है। इसे जीत या हानि के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। हम समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए सभी के प्रयासों का भी स्वागत करते हैं सत्य की स्थापना हुई है । वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या विवाद मामले पर फैसले के बाद प्रतिक्रिया दी ट्वीट करते हुए फैसले का स्वागत किया और कहा कि इसे किसी की हार-जीत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।निर्णय पर मुख्य मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी की प्रतिक्रिया बेहद प्रशंशा योग्य है उन्होंने कहा कि “अयोध्या विवाद मामले में मुझे खुशी है कि सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार फैसला सुनाया, मैं अदालत के फैसले का सम्मान करता हूं।”
कारसेवा अभियान में भाग लेकर अभाविप भी इस अभियान का हिस्सा 1989 में बनी तक “Student’s For RamJanmaBhoomi” अभियान से देशभर का विद्यार्थी वर्ग जुड़ा । केम्पस केम्पस में सभाओं ओर सम्पर्को में एक नारा परवान चढ़ा “तलवार निकली है म्यान से ,मंदिर बनेगा शान से” । सदियों की इस प्रतीक्षा के समाप्त होने पर अभाविप के युवा नेतृत्वकर्ता महामंत्री आशीष चौहान ने निर्णय अभिनंदन किया ।
मन हर्षित है राम इस संस्कृति के आधार पुरूष है उनके भव्य मंदिर का निर्माण राष्ट्र में पुनः रामराज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करेगा श्रीराम इस राष्ट्र के प्राणतत्व हैं। जो राष्ट्र का मंगल करे ,जहां नीति और धर्म है, वहां श्रीराम हैं।
“रामो राजमणिः सदा विजयते, रामं रमेशं भजे …”।
श्रीराम सदा विजयी होते है । इस ऐतिहासिक दिन पर मंदिर का निर्माण चाहने वाले सभी महापुरुषों ओर बीत गयी पीढ़ियों के स्मरण अनायास ही हो आरहा है साथ ही इस अभियान में मंत्र रूप ले चुके जागरण गीतों में से एक गीत की पंक्ति भी याद आ रही है ।
“अयोध्या करती है आवाहन
ठाठ से कर मंदिर निर्माण”
|| जय श्रीराम||
अयोध्या प्रकरण : 1526 से अब तक
1526 : इतिहासकारों के मुताबिक, बाबर इब्राहिम लोदी से जंग लड़ने 1526 में भारत आया था। बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने 1528 में अयोध्या में मस्जिद बनवाई। बाबर के सम्मान में इसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया।
1853 : अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय पहली बार अयोध्या में साम्प्रदायिक हिंसा भड़की। हिंदू समुदाय ने कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई।
1949 : विवादित स्थल पर सेंट्रल डोम के नीचे रामलला की मूर्ति स्थापित की गई।
1950 : हिंदू महासभा के वकील गोपाल विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी दाखिल कर रामलला की मूर्ति की पूजा का अधिकार देने की मांग की।
1959 : निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल पर मालिकाना हक जताया।
1961 : सुन्नी वक्फ बोर्ड (सेंट्रल) ने मूर्ति स्थापित किए जाने के खिलाफ कोर्ट में अर्जी लगाई और मस्जिद व आसपास की जमीन पर अपना हक जताया।
1981 : उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने जमीन के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।
1885 : फैजाबाद की जिला अदालत ने राम चबूतरे पर छतरी लगाने की महंत रघुबीर दास की अर्जी ठुकराई।
1989 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल पर यथास्थिति बरकरार रखने को कहा।
1992 : अयोध्या में विवादित ढांचा ढहा दिया गया।
2002 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित ढांचे वाली जमीन के मालिकाना हक को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
2010 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2:1 से फैसला दिया और विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बराबर बांट दिया।
2011 : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
2016 : सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की इजाजत मांगी।
2018 : सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद को लेकर दाखिल विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
6 अगस्त 2019 : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर हिंदू और मुस्लिम पक्ष की अपीलों पर सुनवाई शुरू की।
16 अक्टूबर 2019 : सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई पूरी हुई
9 नवम्बर 2019 : निर्णय में श्री राम लला विराजमान को भूमि का एकाधिकार
”